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________________ दमोह में आगमन . ११के बाहर था । जब कभी सुबह मिठाई न मिलती तब मैं रोटी खाने के समय तक ज़रूर ले लेता तब उस पेड़े के साथ ही. रोटी खाता इस प्रकार प्रतिदिन मिठाई खाने पर भी मुझे यह असन्तोष सदा रहता था कि भर पेट मिठाई कभी नहीं मिलपाती जब कि मैं प्रतिदिन भर पेट मिठाई खाना चाहता था । अन्त में मैने भर पेट मिठाई खाने का एक सस्ता तरीका निकाला । जब रोटी खाने के समय पेड़ा मिलता तब मैं पहिले दाल शाक के साथ कुछ . रोटियाँ खालेता फिर आधे पेड़े के छोटे छोटे टुकड़ों के साथ रोटी खाता इस प्रकार जब मिठाई के साथ रोटी से पेट भर जाता तब चंचा हुआ आधा पेड़ा कोरा खाजाता इस प्रकार एक ही पेड़े में भर पेट मिठाई खाने का अनुभव हो जाता। एक दिन पिताजी कहीं बाहर गये थे। इसलिये दिनभर मिठाई न मिली। वे रात को आये तो मैंने मिठाई का तकाजा किया। उनने कहा-सुबह ले देंगे परन्तु आधी से अधिक रात्रि के लम्बे समय तक के लिये मिठाई उधार रखने की साहुकारी करने के लिये मैं तैयार न हो सका । इसलिये जब तक मिठाई न मिली तब तक न मैं सोया न मैंने पिताजी को सोने दिया । अन्त में पिताजी 'उठे, मिठाईवाले को जगाकर मिठाई लाये तंब कहीं मैं शान्त हुआ। बाल्यकाल की वह निर्दयता, स्वार्थपरता और जिह्वालोलुपता की याद आते ही.अब हँसी तो आती ही है और पिताजी के सन्तान-वात्सल्य से भक्ति भी पैदा होती है पर अपनी उस अमनुप्यता पर लज्जा भी कम नहीं आती ।..मनुष्य जानवर का विकसित रूप हैं' डार्विन के इस सिद्धान्त पर विश्वास करने को जी चाहता है । .
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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