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________________ विजातीय-विवाह-आंदोलन [ १८५ तो मेरे घर आप मेरे कुटुम्बी की तरह रह सकते हैं ....आदि । पर इसी समय सेठ ताराचन्दजी (बम्बई) ने बम्बई बुलाया , सो जहां मैं दमोह जाकर एक झोपड़ी में गुजर करने का कार्यक्रम बना रहा था वहां घर का विचार छोड़कर बम्बई चल दिया । . त्यागपत्र का रिवाज पूरा किये जाने पर भी विद्यालय के साथ जो मेरा सम्बन्ध टूटा उसे एक तरह से मुझे निकालना कह सकते हैं और निकालने का निर्णय भी ऐसा कि जिसमें मेरे पक्ष की बात सुनी ही नहीं गई । मेरी अनुपस्थिति में ही निर्णय किया गया और दिल्ली से आने पर जब मैंने विरोधियों को चैलेंज दिया तो वह भी सबने टाल दिया । पर यह सब अन्धेर जो मुझे सहना पड़ा वह व्यर्थ नहीं गया । इसलिये विद्यालय से मेरी जैसी विदाई हुई वैसी उस विद्यालय में पहिली ही थी और अभी तक अन्तिम भी कही जा सकती है | आते समय स्टार एशोसियेशन की तरफ से अंग्रेजी में, संस्कृत वाग्वर्धिनी समिति की तरफ से संस्कृत में और वर्धमान सभा की ओर से हिन्दी में, इस तरह तीन मानपत्र और चांदी का गुलदस्ता भी भेंट किया गया। विद्यालय के मंत्रीजी भी बधाई देने और यशोगान करने सभा में आये । अंग्रेजी के जो छात्र कभी पैर नहीं छूते थे वे भी पैरों पर गिर पड़े । इस प्रकार विरोधियों ने मुझे दवाने का जो प्रयत्न किया उसकी प्रतिक्रिया कईगुणे रूप में उल्टी ही हुई । जैन पत्रों में इस विषय को लेकर काफी चर्चा हुई, धन्यवाद और वधाइयों के ढेर लग गये । इस तरह एक महिने की चिन्ता के बाद मुझे व्यक्तित्व, साहस, यश और अनेक तरह की स्वतन्त्रता मिली और कुछ महिनों में ही ।
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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