SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८] आत्म-कथा छोटासा पुतला बन गया था । मैंने जब देखा तब यह कोई बच्चा है यह मैं नहीं समझा । मैं तो उसे पुतला समझकर लालच की नज़र से देखता रहा और सोचता रहा कि ये स्त्रियाँ चली जाय तो में इसे ले भागें । पर स्त्रियाँ गई नहीं और मुझे निराश होकर बाहर आना पड़ा। इसके बाद मुझे इतना ही याद है कि माता जी को लोग अरथी पर वाँधने लगे। लाल कपड़े से उन्हें ढंक दिया । पहिले तो मैं आश्चर्य और जिज्ञासा से देखता रहा । मरना किसे कहते हैं यह तो में जानता ही न था परन्तु जब लोग अर्थी उठाने लगे तब मेरा आश्चर्य शोक बन गया और मैं जोर जोर से रोने लगा। एक पडेसिन मुझे गोद में लेकर दूसरी जगह चली गई । माताजी का क्या हुआ? इसका मुझे पता न लगा । मुझे स्मरण तो नहीं है परन्तु पिता जी कहा करते थे कि 'गुमानो' नाम की एक कृपक महिला शैशव में मुझ से बहुत प्यार करती थी और दूध पिलाने के सिवाय धात्री के सारे काम वही करती थी। मेरे दमोह आने के बाद मुझे उसके दर्शन हुए थे। उसने मेरे लालन-पालन की बात कही थी, प्रेम भी बताया था । कुछ श्याम वर्ण, मँझला कद और साधारण मोटा शरीर अभी भी मेरी आँखों के सामने झूलता है । और उसके विषय में भक्तिमय मोह के संस्कार अभी तक निर्मूल नहीं हुए हैं । कदाचित् आज उसके दर्शन हो जायँ तो सम्भवतः मातृदर्शन कैसी प्रसन्नता हो । .. यह समझते हुए भी कि जीवन तो नदी नाव संयोग' है 'पंखी रैन बसेरा' है यहां कौन किसका हैं ? संपर्क में आये
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy