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________________ १६८ ] त्मिकथा पक्षपाती हैं । मैं पर्दा-प्रथा का कट्टर शत्रु हूँ, परस्पर जातियों में विवाह कराना चाहता हूँ, ढोंग दस्तूरों को विलकुल उड़ाना चाहता हूँ। 'जैनधर्म के असली सिद्धांत सार्वकालिक हैं बाकी सामयिक' यह भी मानता हूँ, इसलिये मुझे सब लोग नास्तिक समझते हैं । जिस दिन मैं जैनियों की नौकरी छोड़ दूंगा उसी दिन इन बातों का प्रचार करूंगा। ___ इन्दोर २२ जुलाई १९२३ हम दुनिया को तो दोष देते हैं मगर हम खुद नीच हैं और समय समय पर नीचता का परिचय भी दिया करते हैं ।। यदि हम आज एक अवला (विधवा) की रक्षा न कर सके . तो हमारे जीवन से क्या लाभ ? माना कि हमारे हृदय में दया थी लेकिन इससे क्या ? जब हम वह काम में न लाये और लाने के समय को टाला । आजकल विधवाओं की बड़ी दुर्दशा है वे अमंगल रूप समझी जाती हैं जो वास्तव में मंगलस्वरूपा हैं उन अनाथिनियों का इतना अपमान किया जाता है कि वे वेचारी घबराकर धर्मभ्रष्ट हो जाती हैं, व्यभिचारिणी हो जाती हैं, वेश्यावृत्ति स्वीकार कर लेती हैं । पुरुष तो अपने दस दस विवाह करें मगर उन वेचारियों को पुनर्विवाह करने में भी पाप माना जाता है यह कितना अन्धेर है ? सचमुच भारतवर्ष बहुत असभ्य वना हुआ है। इन्दोर . २६. सितम्बर १९९३ .: मैंने अच्छी तरह विचार कर निश्चित कर लिया है कि
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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