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________________ १५२ ] आत्म-कथा कार्यकर्ताओं के मत का ठीक प्रदर्शन नहीं हो सकता न उससे समाज को लाभ है न उन्हें । हां, वैतनिक कर्मचारी अगर समाज रुचि के प्रतिकूल सुधारक विचार प्रगट करता है तब तो उनका मूल्य है क्याकि इसमे उसमें निःस्वार्थता और सत्यानुचरता मालूम होती है । अनुकूल विचारों में तो चापलूसी की ही अधिक सम्भावना है। परिस्थिति के कारण इसके लिये वह विवश भी है. इसलिये वह वकील बन सकता है निष्पक्ष साक्षी नहीं बन सकता । खैर, जैन सभाओं में व्यवस्थित प्रतिनिधित्व की व्यवस्था तो थी ही नहीं, उसका ढोंग था इसलिये प्रतिनिधित्व वाली सभाओं के गुण भी उनमें नहीं थे और न वह निर्भीक समाज-सुधारकों के संगठनरूप थीं जिससे समाज की गुलामी की जगह समाज हित किया जा सके इसलिये मैं उनकी तरफ से बिलकुल उदासीन हो गया। परलोक-विद्या की बीमारी इन्दोर में ही कुछ महीनों के लिये परलोकं विद्या की बीमारी भी लगी । परलोकविद्या-विशारद वी . डी. ऋषि उस समय इतने प्रसिद्ध नहीं थे। अपनी दुकान चमकाने के लिये वे ग्राहकों और सहयोगियों की खोज में थे । मैने कर्मवीर में जब उनका विज्ञापन पढ़ा और यह जाना कि वे इन्दोर में ही रहते हैं तब मैं वड़ा प्रसन्न हुआ। उसी दिन शामको उनका घर ढूंढते ढूंढते जा पहुंचा । मृतात्माओं के चित्र आदि देखकर बहुत प्रभावित हुआ। उनका घर मेरे घर से करीब साढ़ेतीन मील था । प्लाञ्चेट के प्रयोग देखने के लिये मैं उनके घर प्रतिदिन शामको जाता था और रातको एक
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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