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________________ १५० ] आत्म-कथा कि युद्ध में, चिकित्सा में, सामाजिक और धार्मिक क्रान्ति में बहुमत कुछ काम नहीं देता । बहुमत बनाने के लिये पहिले एक ऐसा स्वतन्त्र संगठन करना पड़ता है जिसे सत्य की पर्वाह होती है बहुमत की नहीं। सत्ता को नियंत्रित रखने के लिये प्रतिनिधि संस्था की जरूरत है, युद्ध और क्रान्ति के लिये तो एक तरह के आदमियों का दृढ़संगठन चाहिये। इन्हीं सभाओं में मुझे सब बात के प्रमाण मिले कि राजनीति और समाजनीति को जुदा जुदा करके मनुष्य कैसा दम्भ करता है ? एक बार परवारसभा में चार सांकों के प्रस्ताव पर चर्चा चलरही थी, मेरे सिर में दर्द हो रहा था इसलिये मैं भीड़ से कुछ वाहर सिर पकड़े बैठा था। एक सज्जन आये, बोले-आपकी तबियत बहुत खराब है आप डेरे पर जाकर सो जाइये। मैं उनका मतलब ताड़ गया, मैंने कहा आपकी यही मंशा है न कि आपके विरोधियों का एक बोट और कम हो जाय । वे लजित हो गये । मुझे आश्चर्य हुआ कि ये सज्जन कांग्रेस के खास कार्यकर्ता हैं कांग्रेस ने अछूतोद्वार आदि बातें अपनी योजना में शामिल करदी थीं पर और बड़ी बात तो जाने दीजिये इस आठ साँक चार साँक में भी ये पुराने लोगों के साथी थे। तभी से मैं महसूस कर रहा हूं कि सामाजिक धार्मिक क्रान्ति के लिये राजनैतिक रंगमंच यहां काम नहीं दे सकता। पीछे तो इस बात के समर्थन में और भी अनेक अनुभव हुए।. ..
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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