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________________ शहापुर में [१३७ लिये नौकरी का एक विज्ञापन पढ़ने में आया । मासिक वेतन था १००)। मैं लुभाया । बड़ी · योग्यता से पत्रव्यवहार किया अपनी योग्यता का छोटा-सा इतिहास लिख मारा, पर उत्तर आया तो उसमें लिखा था कि हमें आप सरीखे योग्य विद्वान की बड़ी जरूरत हैं पर खेद है आपकी उम्र सिर्फ २१ वर्ष है जब कि हमें कम से कम ३५ वर्ष का आदमी चाहिये । . , . , योग्यता तो किसी तरह खींचतान कर बढ़ाई जा सकती थी र उम्र को कैसे खींचता तानता। लिहाजा अपनासा मुँह लेकर रह गया। इतने में एक मित्रने कहा--इन्दोर में धर्माध्यापक की जगह खाली है, आप वहाँ क्यों नहीं चले जाते ? मैंने पत्र लिख दिया । ५५) महीना और रहने को मकान के साथ नौकरी मिल गई । यहाँ मेरे पुराने सहपाठी और मित्र भी थे। लिवनीवालों को जब मालूम हुआ तो मुझे लिखा, अधिकारियों पर जोर डाला कि हमारा पंडित तुमने क्यों ले लिया ? मैंने उनको लिखा कि पंडित कोई दासदासी या. जानवर नहीं है कि कोई किसी से लेले । साथ ही यह भी लिखा कि सिवनीवालों ने पांडित्य का पूरा सन्मान नहीं किया । आपने अमुक जगह सन्मान नहीं किया और अमुक ने तव सन्मान नहीं किया आदि । पांडित्य के गौरव की रक्षा के नाम पर झूठे अहंकार के कारण मेरा वह पत्रव्यवहार इतना कटु हो गया था कि उसे नादानी और असभ्यता कहा जा सकता है । इसका दण्ड भी मुझे लगे हाथ मिल गया क्योंकि सिवनी में जिन घटनाओं को मैंने अपना अपमान समझा था वैसी घटनाएँ इन्दोर में सन्मान समझी जाती थीं। .. : . . . . . .
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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