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________________ शाहपुर में [ १३३ गई थी, अब तो श्रद्धा, आदर और प्रेम की व्यापक तथा गहरी जड़ जम गई थी । . पर इस गहरी जड़ को उखड़ने में देर न लगी । जब मैं . विधवा-विवाह का आंदोलक बनकर समाज के सामने आया और शाहपुर के लोगों को यह मालूम हुआ तो श्रद्धा, प्रेम और विनय सब उड़ गये सिर्फ़ दिखाऊ शिष्टाचार [ सो भी काफी अल्प मात्रा मे ] रह गया । सुधारक बनने से मुझे परिचय और चिंता का बोझ काफी सहना पड़ा है, आर्थिक संकट का भी सामना करना पड़ा है परन्तु सबसे अधिक चोट पहुँचाने की चेष्टा जिस ने की है वह है यह उपेक्षा और निरादर । समाज में ऐसे ऐसे विद्वान् त्यागी भी हैं. जिनने जरजोरू का सचमुच त्याग कर दिया है पर इस उपेक्षा और निरादर की मार सहने की जिनमें ताकत नहीं है इसलिये दिल की बात समाज से नहीं कह सकते जब किं जीवन की पवित्रता और वास्तविक महत्ता के लिये उपेक्षा और निरादर पर विजय करना आवश्यक है। · · * कोई आदमी गुड पसंद नहीं करता इस लिये शक्कर खाता है तो इसका यह अर्थ नहीं है कि वह त्यागी है इसी प्रकार किसी को कंचन और कामिनी पसंद नहीं है, भय और आदर पसंद है तो यह सिर्फ रुचिभेद हुआ, त्याग नहीं । त्याग तो सत्य या विश्वहित की. पर्वाह करना है भय और आदर की पर्वाह नहीं । । पर यह है काफी कठिन ? जब मनुष्य यह देखता है कि जहां मैं देवता की तरह पुजता था वहाँ अब कोई मनुष्य समझने
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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