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________________ शाहपुर में [ १२९ ... (१७) शाहपुर में सिवनी से छुट्टी लेकर जब चला तब यह भी सोचलियां थी कि अगर कहीं अच्छी नौकरी लगजायगी तो दूसरी जगह चला जाऊंगा नहीं तो सिवनी ही लौट पडूंगा इसलिये सब सामान ले लिया था। रास्ते में जबलपुर में ठहरा भी । एक शिक्षाजीत्री भाई ने यह आग्रह भी किया कि मैं यहाँ के जैन बोर्डिंग में धर्माध्यापक हो जाऊँ । जिन सज्जन के हाथ में बोर्डिंग का कारबार था उनसे' _उनने जिक्र भी किया। जहाँ मैं ठहरा था उसके सामने के मकान में वे रहते थे और बराण्डे में टहल रहे थे। उन भाई ने कहा कि अमुक पंडितजी आये हैं उन को.. जैन बोर्डिंग में रखने के लिये . आप चलकर उनसे कहिये । उनने मेरे पास आना नामंजूर किया और कहा-उन पंडितजी.कोही यहाँ ले आओ। " मुझे मालूम हुआ कि उन्हें अपने अधिकारीपन का कुछ खनाल आगया है | मैंने मान लिया कि यह तो मेरा अपमान है, धन और अधिकार के आगे इस प्रकार विद्वत्ता को नहीं झुकाया जा सकता । उन्हें मेरे पास आकर अनुरोध करना चाहिये था । मैं नौकरी की भीख माँगने ऐसे नासमझ लोगों के यहाँ क्यों जाऊँ ? मेरा यह घमंड कितना निःसार और 'पागलपन था, यह तो इन्दोर आने पर ही मालूम हुआ। पहिले तो ऐसे ही स्वप्न थे कि एक तरफ़ से राजा आरहा हो दूसरी तरफ़ से ब्राह्मण, तो राजा का कर्तव्य है कि वह ब्राह्मण के लिये रास्ताः छोड़ दे । मैं विद्वाना हूं: इसलिये कर्म से ब्राह्मण हूं इसलिये बड़े से.. बड़े श्रीमान् के आगे मेरा ऐसा . ' . या आआ.
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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