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________________ ११४ ] 'आत्मकथा ही चैन नहीं लेने देता पर कभी कभी मन काफी क्षुब्ध हो जाता है, प्रयत्न व्यक्तिच की. वृद्धि की दिशा में भी काम करता है, असफलता में वेदना भी होती है, इससे मालूम होता है यहाँ मोह - है, शैतान है, खेर मोह का किट्ट हो या न हो पर मोह की कालिमा अवश्य है । इस प्रकार प्रेम और मोह हण्टर मारते हुए जीवन को दौड़ाते जाते हैं । फिर भी उमंग से दौड़ने वाले घोड़े और हण्टर खाखाकर दौड़ने वाले घोड़े में जो अन्तर है वह यहाँ भी है । हण्टर माग्ने वाला प्रेम या मोह जब थक जायगा तभी घोड़ा बैठ जायगा और मुझे ये दिन दूर नहीं मालूम होते जब यह घोड़ा चैटेगा अंयवा जब तक हण्टर मारने वाले रुकावट करेंगे तब तक बैठा रहेगा। खैर, यहाँ छोटीसी बात को लेकर मैं दार्शनिको सर,खा बहुतसा ववाद कर गया । कह तो यही रहा था कि बनारस में एकान्त में बैठकर भक्तिमग्न होने की बड़ी लालसा थी, प्रतिदिन घंटों इसी मग्नता में बिताता था। आज भी उस सौभ ग्य की लालसा है, आशा है वह कभी पूरी होगी या कुछ दिनों महीनों या वर्षों के लिय ही उसे पासकू। . नौकरी लगजाने के बाद हम दोनों बहुत सुखी हुए, पिताजी भी प्रसन्न थे । वे दो दो तीन तीन महीने में बनारस आंत थे। एक तो मॅहगाई, फिर आंन जान का यह खर्च, इससे आर्थिक तंगी .. मालूम होने लगी, मैं सौ रुपया इट्टा करना चाहता था पर एक चर्ष में भी न कर सका इसलिये वनारस की नौकरी छोड़ दी। परन्तु वनारस छोड़ने का इमसे भी. जर्दस्त सगं कारण या विद्यालय के अधिष्ठाताजी, उनन बताया कि अन्य ब्राह्मण अध्यापकों
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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