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________________ मोरेना में [१०५ मोरेना के दिन पूरे करके परीक्षा देने कलकत्ता गया। दिन में परीक्षा देता था, रात में नाटक देखता था । परीक्षा देकर रास्त में सम्मेदशिखर की यात्रा की। एक ही दिन में इतनी लग्बी यात्रा करने में मनुष्य को क्या शान्ति मिलती होगी यह नहीं समझा । करीव वीस मील का चहना उतरना है। किसी तरह चक्कर ही कट पाता है, निराकुलता से बैठकर परमार्थ चिन्तन का कोई अवसर नहीं मिलता, ऐसी लम्बी यात्रा के लिये तो बीच में यात्रियों को ठहरने और खाने पीने के लिये अनेक स्थान बनना चाहिये । जिससे यात्री ठहरते हुए दो तीन दिन में यात्रा पूरी कर सकें, प्रकृति की शोभा देख सकें, वन-विहार का आनन्द ले सकें। यात्रा में १४ मील, पार्श्वनाथ शिखर तक, मैं किसी तरह पहुँच गया पर लौटते समय परों ने जवाब दे दिया । अन्त में झाड़ के नीचे लट गया । दो भील एक कपड़े में मेरी पोटली बाधकर धर्मशाला में डाल गये। इस मज़दरी के उनने डेढ़ रुपया लिया। धर्म के लिये कष्ट सहना पड़ता है इस अनुभव से हमने धर्म और कष्ट को एक ही चीज़ समझ लिया है । और धर्म का माप विवेक से या उसके फल से नहीं करते किन्तु कष्ट से करते है। धर्म के नाम पर किसी भी तरह का कष्ट सह लेना हमने धर्म समझ लिया है इसका फल यह हो रहा है कि धर्म के नामपर यहाँ नरक तो बन गये हैं पर धर्म का फल स्वर्ग दिखाई नहीं देता अथवा बहुत कम दिखाई देता है। .
SR No.010832
Book TitleAatmkatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatya Samaj Sansthapak
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1940
Total Pages305
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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