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________________ इने अवधिज्ञाननां खसी जाय छे तेने अवधिज्ञान थाय छे; जेने मनः पर्यवज्ञानना आवरण खश्यां होय तेने ते ज्ञान थाय छे. कोईने पहेलु मनःपर्यव ज्ञान थाय छे, तो कोइने पहेलु अवधिज्ञान थाय छे ए प्रमाणे कर्मनां आवरण जेंवी रीते खपे छे ते प्रमाणे ज्ञान प्रगटे छे. ज्ञाननां नाम पण ते प्रमाणे जूदां जूदां छे. केवलज्ञानावरणी पांचमी प्रकृति ते केवलज्ञानने आवरे छे. केवलज्ञानना आवरण जेने नाश पामे छे, तेने इंद्रिओ ने मननी जरूर पडनी नथी. पोतानी आत्मशक्तिथी ज रूपी अरूपी सर्व पदार्थ- अतीत, अनागत, तथा वर्तमानकालनुं ज्ञान थाय छे. ते ज्ञान केवु छ के-जेम आरीसामां सर्वे पदार्थनो भास पडे छे तेम आत्मामां सर्वे पदार्थ जणाय छे. जाणवामां कोइ पण प्रकारे खामी रहेती नथी. एक एक पदार्थे अतीत कालमां अनंतां स्वरूप धारण करयां छे तेमां अनंता पदार्थ छे ते सर्वेनां स्वरूप एकी वखते जाणवामां आवे छे. एवी अद्भत ते ज्ञाननी शक्ति छे. एवं ज्ञान प्रगट थया पछी संसारमां तेमने फरवू पडतुं नथी, तेमने मुक्ति मले छे. एवा ज्ञानवाला पुरुष 'संपूर्ण रीते धर्म दर्शावी शके छे. तेमने जन्म मरण करवू पडतुं नथी. ए पांच प्रकारना ज्ञानने आवरे तेनुं नाम ज्ञानावरणी कर्म कहीए.. बीजु दर्शनावरणीय कर्म एटले आत्मानो दर्शन गुण जे देखq तेने रोकनारं जे कर्म ते. ते विषे समजवू जे-ज्ञान अने दर्शन साथे वर्ते छे. प्रथम सामान्य उपयोग ते दर्शन अनें विशेष उपयोग ते ज्ञान. जेम के एक माणसने दीठो ते वखते मनमां आव्यु जे आ कोइक माणस छे त्यां सुधी सामान्य उपयोग अने ज्यारे एम समजायु के आ तो जिनदास छे, जिनधर्मी छे, शाहुकार छे, सारा माणस छे, एवं विशेष प्रकारे समजायुं त्यारे विशेष उपयोग जाणवो. विशेष उपयोग ते ज्ञाननो छे. एवी रीते दरेक पदार्थमा प्रथम सामान्य उपयोग अने पछी विशेष उपयोग थाय छे. हवे सामान्य उपयोग चार प्रकारना छे. (१) चक्षुदर्शन. चक्षुए करी देखq तेमां आवरण होय तो अंध होय वली थोडां श्रा
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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