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________________ विज्ञान थयु होय तेने आखा लोकमां जे जे पुलिक पदार्थ के तेनुं ज्ञान थाय छे, गया काल विषे पण असंख्याता कालनुं ज्ञान थाय छे अने जेने ए कर्मे करी आवरण लाग्यां होय छे तेने ते ज्ञान बिलकूल होतुं नथी पण पाछी जेम जेम आत्मानी विशुद्धि थती जाय छे अने राग द्वेष रूप उपाधि ओछी थती जाय छे तेम तेम अवधिज्ञान प्रगट थाय छे. कोइने थोडां आवरण खश्यां होय तो थोडा क्षेत्रमा जे अदृश पदार्थ होय छे ते आत्माथी जाणी शके छे. पछी ते करतां वधारे आवरण खसे तो वधारे क्षेत्र तथा वधारे काल, ज्ञान थाय छे. जेम आपणे कोइ गामना पदार्थ जोया होय छे पछी बीजे गाम जइए छीए, त्यारे आंखे करी तो ते ग्राम देखी शकता नथी पण अंतरंगमां विचारीए छीए तो जाणे नजरे देखता होइए तेम थाय छे. तेम अवधिज्ञानथी पण वगर जोयेला पदार्थ अंतरंगमा देखाय छे. एना छ भेद छे. तेनो विस्तार नंदीसूत्र तथा आवश्यक सूत्र विगेरेमा विशेष प्रकारे छे ते जोइ लेवो. श्रा ज्ञानने आवरे तेने अवधिज्ञानावरणी कर्म कहीए. वली देवताओने आ ज्ञान होय छे तेथी मंत्रनुं स्मरण करतां ज तेने खबर पडे छे अने ते आवे छे. तेमां पण जेवां जे देवताने आवरण खुल्यां होय छे ते प्रमाणे तेने ज्ञान प्रगट थाय छे. ए गतिमां विशुद्ध प्रणामवाला जाय छे. तेथी थोडं वधतुं पण दरेकने ए ज्ञान होय छे. समूलगुं न होय तेम होतुं नथी. त्यां पण मिथ्यादृष्टि देवता छ तेने विभंगज्ञान होय छे. तेनुं कारण जे तेने आत्मतत्वनुं ज्ञान होतुं नथी, पण परोक्ष पदार्थने जाणवानी शक्ति होय छे. सम्यकदृष्टि छे तेने तो अवधिज्ञान कहेवाय छे. तेश्रोने तत्वज्ञान छे. ते पुरुषो तो देवताना सुखने पण तृण समान. गणे छे अने मनमां भावना भावे छे के " पूर्वे एटले पाछले भवे कर्मथी मूकावा सारू तप संजम विगेरे.साधन कस्यां पण ते साधन पूर्ण रीते कस्यां नहीं तेथी आ देव गतिमां संसार वर्चना करवानुं थयु अने जन्म मरणनां दुःख टल्यां नही. आ देवतानां सुख अस्थिर छे अने कर्मबंधननां कारण छे. वास्ते
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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