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________________ ( ३६ ) करवी योग्य होय ते करे छे. एवा मुनि कोइ प्रकारे स्वप्नमां पण विषयनी वांछा राखता नथी अने जे विषयनी वांछाए मोहने वश पडी संयमप्रवृत्ति ने श्रावकपणानी प्रवृत्ति छोडे छे अने माने छे के श्रमे आत्मज्ञान साधीए छीए. ते कांइ जैनमार्गनी रीति नथी. जैनमार्गना जाणनार गणधर महाराज तथा आचार्य पण पोताना गुणस्थान प्रमाणे किया करे छे. जेम के स्थावर मुनिए आत्मस्वरूपनां ज प्रश्न कस्यां छे अने गौतमस्वामीए तेना उत्तर आत्मस्वरूपना ज सर्व प्रकारे बताव्या छे. पण त्यार - पछी " चार महाव्रत रूप संयम हतुं ते पंच महाव्रत रूप संयम प्रतिक्रमण सहित आदरुं " ए अधिकार श्री भगवतिसूत्रमां पहला शतकने नवमे उद्देशे छापेली प्रतमां पाने ( १३१ ) थी छे. माटे गुणठाणानी वचना प्रमाणे क्रिया श्रात्मधर्ममां अटकाव करती नथी. तेम छतां जे प्रभुनी श्राज्ञाथी विपरीत विचार स्थापे छे, ते सर्वज्ञना मार्गनी रीति नथी. सर्वज्ञ महाराजे जेम सिद्धांतमां कह्युं छे तेम वर्त्तवामां ज कल्याण के. ४८ प्रश्नः - आत्मा नित्य छे के अनित्य छे ? उत्तरः- श्रात्मा सदाकाल नित्य छे. ४९ प्रश्नः - जीव मरे छे एम बधुं जगत् कहे छे ते केम ? उत्तर:- जीव मरतो नथी पण कर्मना संयोगे करी मनुष्य, तिर्यंच, नारकी, देवतापणुं पामे छे. तेनां शरीर संबंधि पंचेंद्रि विगेरे दश प्राण बांधे छे. स्पर्शेद्र ते शरीर, रसेंद्रि ते जीभ, घ्राणेंद्रि ते नाक, चक्षुइंद्रि ते आंख, श्रोतेंद्र ते कान, ए पांच इंद्रि तथा मनबल ते मननी शक्ति, वचनबल ते बोलवानी शक्ति, कायबल ते शरीरनी शक्ति, श्वासोच्छ्रास अने आयु ए दश प्राण पूर्वना कर्मथी प्राप्त थाय छे अने तेनी स्थिति पूरी थाय एटले तेनो विनाश थाय छे. तेने जीव मरे छे एम लोको कहे छे. कारण जे जीवनुं स्वरूप अरूपी छे तेने कोइ देखतुं नथी ने आ दश प्राणने जोइने जीव छे एम कहे छे. ज्यारे ए प्राण गया त्यारे देह जीव सहित थाय छे तेनुं कारण जे आ शरीरमां जीव रहेतो नथी. पछी
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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