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________________ ( २९ ). पालथी बगडे तेवा प्राणीओनें शा माटे बनवि ? वली ईश्वर समदृष्टिवान ला होवाथी एकने मनुष्य बनावे, एकने जनावर बनावे, एकने सुखी करे; एकने दुःखी करे एम होय ज नहीं. तेनो विचार तो सर्वने सुखी बनाववानो ज होवो जोइए अने तेवू तो कांइ नगत्मा देखातुं नथी. तेथी ज. गत्का ईश्वर मानवो ए वास्तविक नथी. वली केटलाएक कहे छे के ए तो बधु ईश्वरनी इच्छावडे ज.बने थे, आ कहे पण असत्य छे. केम के जे जे धर्मवाला मुक्तिने माने छे अने मुक्ति भेलववा उद्यम करे छे तेना शास्त्रमा प्रांते क्रोध, मान, माया, लोभ ए चारथी मूकावू अने समभाव: मां रहे एनुं नाम ज- मुक्ति कहेल छे. त्यारे विचारो के बीजाप्रोने तो इच्छाथी मुक्त थवा कहे छे अने पोते.या जगत् उपजाववानी इच्छा करे छे ए बात केम समबे ? जेम हालना केटलाएक.धर्मगुरु नाम धरावनाराओ पोते द्रव्य राखे छे, स्त्री भोगवे छे अने बीजा तेना.सेवको: ने उपदेश करे छे के 'द्रव्य अस्थिर छे, अर्थ अनर्थवें मूल छे, स्त्रीना संगथी अनेक प्रकारनां कर्म बंधाय छे, माटे तमे द्रव्य तथा स्त्री बन्नेनो त्याग करो. एटले तमने घणो लाम थशे पा दृष्टांत प्रमाणे जगतना का ईश्वर पोते तो राग द्वेषयी मुक्त थया नथी अने बीजाने मुक्त थवा कहे थे, माटे एवं कथन ईश्वर होब ज नहीं. एवी वातो करनारा ईश्वरना स्वरूपने समजता नथी अने फोगटना ईश्वरने दूषण आपे छे.ई. श्वर तो सर्व प्रकारनी राग द्वेषनी परिणतीनो त्याग करनारा होय छे. कोइ प्रकारनी उपाधि तेमने होती नथी; संसारी काइ पण काम तेमने करवू नथी. संसारी काम तो देहधारी प्राणी करे छे. ईश्वर देह रहित थयेला छे. पोताना आत्मस्वभाव वडे सर्व पदार्थोने जाणे देखे छे, पण तेमां प्रणमता नथी. ईश्वग्नुं खरं स्वरूप या प्रमाणे होवाथी तेस्रो जी वनों के पुद्गलंना कत्ती नथी, जीव अने पुद्गल पदार्थ अनादिकालथी स्वभाविकपणे जंछे एम समजवू. २ प्रश्नः-आत्माना चेतनगुणने कर्म जड होवांथी शी रीते पांवी शके ... . .. . . . .
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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