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________________ ('90) 7 वडीलनी अथवा माननीय पुरुषनी 'छबी अथवा तेनी कोई वस्तु पंडी होय े तो तेने जोइने ते पुरुष अने तेना गुणो जैम स्मरणमां आवे छे; तेम भगवंतनी मूर्ति जोइने पण थाय छे. प्रतिमाजीनुं मुख जोइने विचारे के के, या मुख के छे १ जे मुखे कोइना श्रवर्णवाद, मृषावाद के, हिंसाकारी वचन बोलाएलां नथी. तेमां रहेली जिव्हावडे रसेंद्रिना विषयोनुं सेवन करेल नथी, पण आ मुखवडे धर्मोपदेश देइने अनेक भव्य प्राणीओने संसारसमुद्रमांची ताया छे; माटे श्रा मुखने धन्य छे. श्रा नासिकावडे सुरभिगंध दुरभिगंध रूप घ्राणेंद्रिना विषयोनुं सेवन कर्यु नथी. श्रा चक्षुइंद्रिवडे पांच वर्ण रूप विषयोने सेव्या नथी, कोई स्त्रीना उपर कामविकारनी नजरे जोयुं नथी तेम कोइनी सामे द्वेषनी नजरे पण जोयुं नथी • मात्र वस्तुस्वभाव ने कर्मनी विचित्रता विचारीने समभावे रहेला छे. तेथी एवा नेत्रने धन्य छे. आ कर्णे करीने विचित्र प्रकारना राग रागणी सांभलवा रूप तेना विषयनुं सेवन करेलं नथी, परंतु प्रिय प्रिय जेवा शब्दो का पड्या तेवा समभावे सांभल्या छे. श्रा शरीरवडे कोइ जीवनी हिंसा के अदत्तग्रहण विगेरे कर्यु नथी. मात्र जीवरक्षा 'करी छे अने कोइ जीव दुःख पाने नहीं तेम वर्त्या छे. ग्रामानुग्राम विहार करी भव्यजीवोने संसारना दुःखमांथी उद्धर्या के अने पोते कर्मोंनो क्षय करी केवलज्ञान केवलदर्शन प्रगट कर्यु छे. माटे श्रा प्रभुने धन्य छे. एओ परम उपगारी छे. तेथी तेमनी जेटली भक्ति करी शकुं तेटली क. रवी योग्य छे. श्रावी सुंदर भावना भगवंतनी मुंद्रां देखवाथी उत्पन्न थाय छे. उत्तम प्राणीओ एवा प्रभुनी जल, चंदन, केसर, बरास, पुष्प, धूप, दीप, फल, नैवेद्यवडे पूजा करे छें. तथा आभूषणो चडावे छे. ए प्रमाणे पूजा करवामां यथाशक्ति द्रव्यनो व्यय करतां चितवे के के, हुँ जे द्रव्य पेदा करूं कुं, ते पेदा करतां अनेक प्रकारनां पाप लागे छे. वली ते धन संसारी कार्यमा वापरूं कुं तेथी पण उलटी पापनी वृद्धि करूं कुं. | म्हारे ए धनमांथी म्हारा प्रणाम पहोचे तेटलुं धन जो हुं प्रभुभक्तिमां ·
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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