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________________ ( २५०) कार करे ? उत्तरः- नव पूर्वनी त्रीजी वस्तु सुधी भण्या होय, तेओ परिहारविशु द्धि संयम आदरे, नव जण गच्छमांथी नीकले, तेमां चार जण छ मास सूधी तपश्चर्या करे ने चार जणा तेमनी वैयावच्च करे, ने एक गुरु स्थापे तपश्चर्या करनार छ मास सूधी करी रहे, त्यारे वैयावच्चवाला छ महिना सूघी तपश्चर्या करे. पछी छ महिना गुरु तपश्चर्या करे ने बीजा आठमां श्री एकने गुरु स्थापे, ने सात जण वैयावच्च करे. एवी रीते श्रढार मास सूधी तपश्चर्या करे. तेनुं नाम परिहार विशुद्धिचारित्र कहे के. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने ५७१ मे छे.. प्रश्नः -- १६७ सिद्ध महाराजने चारित्र कहीये के नहि १ उत्तर:- सिद्ध महाराजने व्यवहार रूप चारित्र नथी, तेथी भगवतीजीमां पाने ५७६ मे नोचारित्र नोअचारित्र कह्युं छे. प्रश्न: - १६८ विभंग ज्ञानवालाने दर्शन होय के नहि ? उत्तरः---कर्मग्रंथमां तो ना कही छे, पण भगवतीजीमां पाने ५८८ मे विभंगज्ञानवालाने अवधिदर्शन कहुं छे. पन्नवणाजीमां पण अवधि द र्शन कहां छे. हवे ए वे मतांतर जणाय छे तत्व केवलीगम्य. प्रश्नः - १६९ मुनिने अशुद्धमान आहार पाणी आपवाथी शुं फल थाय? उत्तरः- मुनिने मुख्यपणे तो शुद्धमान आहार पाणी श्रापवाना जभाव होय, पण केटलाएक कारणे अशुद्धमान पण आपे. वली गुरु उपर राग के तेथी कंड़ कंइ चित्तमां पण श्रावी जाय. पण मुनिने प्रतिलाभवाना अतिशय भाव छे, तेथी अल्प दोष ने घणी निर्जरा भगवतीजीमां पाने ६१० मे कही छे. 1 प्रश्नः - १७० प्रायश्चित लेबाना भाव छे, ने एटलामां काल करे, तो आराधक के केम ? उत्तरः -- भगवतीजीमां पाने ६१५ मे मुनि गोचरी गया छे ने त्यां कंद दोष लाग्यो छे, ते गुरु पासे जड़ आलोववांना भाव छे, ने वचमां का '
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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