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________________ । २४८) आ मुजबनो महाराज साहेबनो कागल छे. आ उत्तरो विजयानं दसूरि महाराज साहेबजी शिवाय बीजाथी लखावा बहु कठण छे. वांचीने अमे बहु खुशी थया तथा आ चोपडीमा दाखल कर्या छे. प्रश्नः-१६३ मरण अवसरे समाधीमां चित्त रहे, ते सार कंइ जाप करवाना कह्या छ ? उत्तरः-लोगस्सना कल्पमा आँ आँ अंबराय कित्तिय वंदिय महीया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा ॥ आरुग्ग बोहिलाभ, समाहिवर मुत्तम दितु ॥ १॥ आ मंत्रना ( १५००० ) जाप करवा, धूप दीप करीने व. ली गणती वखत स्थिर आसने बेसवू. आसन चलायमान करवू नहि. खरज श्रावे मच्छर करडे तो पण हाथ उंचो नीचो करवो नहि. माला उपर दृष्टि थापवी ते फेरववी नहि. जीभ होठ गणतां हलाववा नहि. एक ध्याने गणी राखवाथी मरण अवसरे समाधि रहेशे एम लोगस्सना कल्पमा कयुं छे. मांदगी अवसरे ए गाथानुं ध्यान जरूर राख, आउरपञ्चख्खाण पयन्नामां कहुं छे के बार अंगना जाण पण मरण अवसरे वधारे ध्यान करी शकता नथी, तेथी एक गाथानुं ध्यान पण भवसमुद्रथी तारनार छे; माटे वीतरागना धर्मनी हरकोइ गाथार्नु ध्यान करवू. समाधीमा रहेवानी भावना पण जीवने तारनार छे, माटे आ जाप करी मूकवा बहु श्रेष्ठ छे. प्रश्न:-१६४ साधारण द्रव्यथी धर्मशाला विगैरे बांधी छे, ते तथा संघ विगेरे जमाडे ते श्रावक वापरे तो केम ! उत्तर:-धर्मशाला बांधी छे, ते श्रावकने उतरवा सारु छे. तेमां उतरवाने हरकत नथी, पण पोतपोतानी शक्ति प्रमाणे साधारणमां कंह श्रापवू जोइए. श्राद्धविधिमां पाने ११० में छे. तेमां साफ कह्यु के के, ओछु भाडं आपे तो प्रगट दोष छे. कारण जे धर्मशाला करावी जनार कंइ दीर्घकाल एक स्थितिवाला रहेता नथी, तो ते धर्मशालानी मरामत चलाववी विगेरे क्याथी काढवी ? माटे श्रावको आपी जाय तो तेमकान
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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