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________________ ( २२८ ) धर्म नथी. एम जाणी आहारनी इच्छा उठी छे, तेथी सहजे तप करे छे. संयम ते स्वगुणमा रहेQ ने पुद्गल प्रवृत्ति रोकवी, ते संयम गुण प्र. गट थयो छे तेथी इंद्रिओना विषयनी इच्छा वर्तनी नथी. अव्रतनी प्र. वृत्ति करता नथी. कषायथी रहित वर्त छे, मन, वचन अने कायानी माठी प्रवृत्ति रोकाइ गइ छे तेने पण आत्मा निर्मल थाय एवी प्रवृत्तिमां वगवे छे. ए रूप सत्तर प्रकारे संयम धरे छे. बाह्यसंयम सत्तर प्रकारे पालवाथी अंतरंग निज स्वभावमा स्थिर थाय छे. ए रूप संयम गुण व. ते छे. सत्य ते साचुं वचन बोले छे जेने आत्मज्ञान नथी, ते शरीरने महारं कहें छे. आत्मज्ञानी मुनि तेम कहेता नथी. व्यवहारथी तो जेम बोलातुं होय तेम बोले, पण वस्तुधर्मे पारकुं जाण्यु छे तेथी बोले छे. पण अंतरंग उपयोग महारु नथी ए वर्ति रह्यो छे. जे पुरुष पुद्गलनेज म. हारं मानता नथी ते पुरुष बीजी वाबतमा असत्य बोले ज शाना ? प्र. रूपणा पण सहजे यथार्थज थाय, ए सत्य गुण प्रगव्योछे तेनां फल छे. हवे शौच गुण ते निरतिचार व छे. अतिचारादिक दूषण लागे नहि. एटले पवित्रपणुं वर्ने छे. अर्थात् निज आत्मतत्वमा वृत्ति रही छे, ए रूप पवित्रता थइ रही छे, तेथी पुद्गल प्रवृत्तिनां दूषण लागतां नथी एटले सहजे निरतिचार वर्षे छे. कंइ पण पुद्गलीक काममां राग द्वेष करता नथी. जे थाय तेमा कर्म उदय जाणी वर्ते छे. अकिंचन गुण ते बाह्य परिग्रह त्याग धन धान्यादि नव प्रकारे अने आभ्यंतर परिग्रह जे शरीरादिक उपर महारापणानो ममत्व भाव ते सर्व प्रकारे त्याग कयों छे तेथी बाह्य परिग्रह उपरथी सहजे मूछी उतरी गइ छे, वस्त्र प्रमुख रा. खे छे, ते निर्मूपिणे जगतनो व्यवहार साचववा राखे छे, पण ते सारां नबलां मल्या, तेनो कंइ पण विकल्प नथी. मूर्छा गइ छे तेनां फल छे. ए रूप मुनि आकिंचन गुण प्रगट करे छे. ब्रह्मचर्य ते बाह्य थकी स्त्रीनो सर्व प्रकारे त्याग कर्यों छे. अंतरंगथी पांचे इंद्रियोना विषयनी तृष्णा मामी गइ छे. स्वात्म ज्ञानमांज आनंदपणे वर्ते छे. ज्ञानाचारमा
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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