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________________ ( २२४ ) जवालुं होय तो सोपारीनी कोइ पण वाजु उपर प्रकाश विनानुं रहे ? अर्थात् नहिज रहे- तेमज पृथ्विनो गोलो माने छे ते गोला उपर बघे प्रकाश होवो जोइए रात्री पडवी जोइए नहि. ए बाबतमां केटलाएक एवं कहे छे जे त्रण करोड माइल आधुं छे, तेथी गोलानी एक बाजु उपर अजवालु आवे नहि. ए कहेवू अक्कलथी विरुद्ध छे. ए चोवीश हजार माइल तो गोल चक्र भरतां छे, पण एक जाडाइने लंबाइ गणीए तो आठ हजार माइल थाय. हवे त्रण करोड माइल सुधी जे प्रकाश आवी शके छे, तेने आठ हजार माइल आववामां कांइ हरकत होय ए वात संभवती नथी. वली एम कहे जे पृथ्वि काली छे, तेनुं ओछु पडे छे. ए वात पण संभवती नथी. गोल वस्तुनी चारे पासे प्रकाश प्राप्त थाय तेमां कंइ हरकत थाय ए वात पण अकलथी दूर छे. तेम छतां केटलाएक माणसो इंग्रेजोनो कला कौशल्यता जोइने श्रद्धा करी धर्मनी श्रद्धा उपाडे छे, ते अज्ञानता छे. एम समजवू जोइए. संसारनी कलाओ करवानो जीवने अनादिनो अभ्यास छे ते कला. ओ आवी तेमां कंइ नवाइ नथी, पण धर्मनी कला आववी ए बहु दुएकर छ. हजारो माणसमांथी धर्मना प्रवर्त्तनारा बहुज थोडा होय. धर्मनुं जाणवू ते मुश्केल छे. इंग्रेज लोक दूर देश रह्या, ने सर्वज्ञ आ देशमा थया, तेथी आ देशना माणसोने तो कंइ कंइ वासना पण सर्वज्ञनी आची, पण दूर देशवालाने कंइ पण वासना आवेली नहि. तेथी धर्मनी बोबतमा ए लोक कंइ पण समजता नथी. व्यवहारीक कलाओ तो पो. ताने हाथे शीखवाथी आवे छे, पण अरूपी पदार्थनुं ज्ञान सर्वज्ञना वच. नथी थाय छे. माटे सर्वज्ञना वचन उपर जेनी श्रद्धा कायम रहे छे, तेने सम्यक्त परिषहनो जय कर्यों कहीए इहां कोइने शंका थशे जे भ. गवाने कयुं तेज हा कहेवी, ने कंइ विचार करवो नहि. ते विषे जाणवू जे सर्वज्ञनी पोलखाण प्रथम करवी. तेमां सर्व प्रकारे शुद्धता जोवानी -के, ते जोइ लीधी अने तेमां पण कोइ ठेकाणे विरोधता देखाय नहि,
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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