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________________ ( २०६ ) छे. स्वधर्म तो जेटलो आत्मधर्म प्रगट थाय छे, तेमां स्थाप्यो छे. साधर्म रूप धर्मने साधन रूप माने छे. जेम कोइ माणसना घरमा लक्ष रूपायानी दोलत छे पण ते जीव जाणतो नथी. एने कोइ पुरुष ते दोलतना गुणनो जाणकार मल्यो, तेणे समजाव्यो के तहारा घरमा आ म्हो - टी दोलत छे तेना उपर बधो कचरो मेल पथ्थरनो थर चढी जवाथी ते देखाती नथी माटे उद्यम कर, उद्यम करवाथी तारी सर्वे दोलत हाथ श्रावशे. हवे जे पुरुषने ए कहेनार पुरुषनी प्रतीति छे तेणे ए दोलत तो जमीनमा रही छे तेथी ने द्रव्य विना कंइ काम थइ शकतुं नथी अने पोतानी पासे द्रव्य हतुं नहि तेथी पारकाना पैसा देवा करी व्यय करी मजूरो बोलावी मजूरथी तथा पोतानी महेनतथी महेनत करी द्रव्य काढयुं. तेमज सर्वज्ञ महाराजे श्रात्मद्रव्यनुं स्वरुप दर्शायुं, तेथी श्रात्मानुं स्वरूप जाण्युं; पण हाल तो जडनी संगतमां छे तेथी ते स्वरूप जणातुं नथी. ते प्रगट करवाने जेम घन काढवा पारकुं धन लइने काम कर्य तो धन मल्युं, तेम आत्माने अज्ञान संगतमांथी छोडावाना ज्ञानीए जे उपाय बताव्या छे, ते करे तो आत्मधर्मरूपे धन प्रगट थाय. वली एक पुरुषने दोलतना जाणकारे दोलत बतावी. पण ते पुरुषना वचननी प्रतीति करी नहि तेथी तेने दोलत मली नहि. एक पुरुषे कधुं जे, दोलत छे तो पण हुं पारकानी सहायता नहि लउं. पारकुं देवं कोण करे ? एनी मेले नीकलशे तो लइश. ए बन्ने पुरुषने द्रव्यनी प्राप्ति थती नथी, तेम सर्वज्ञना वचनथी श्रद्धा करता नथी तेने श्रात्मधर्मनुं ज्ञान थतुं नथी, तेमज श्रात्मधर्म छे एम नाममात्र जाण्युं, पण तेना साधननी श्र सर्वज्ञना वचनथी विपरीत करी अने निरुद्यमी थया. आत्मानी वातो करवी, पण काम क्रोध, विषय कषाय छांडता नथी उलटा विषय कषायनी वृद्धि करता जाय छे. ए जीवने पण धर्म क्यांथी थशे ? वली केटलाएक जीव एकला व्यवहार मार्गने सत्य माने छे, केटलाएक जीव एकला निश्चय मार्गने सत्य जाणे छे, प्रभुनो मार्ग तो निश्चय व्यवहार
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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