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________________ (१९४) स्त्रीयों करी शकती नथी. जबराइथी के कुलनी मर्यादथी, शील पालवाथी पण महानिशीथजीमां धन्य कृतार्थ कहेल छे माटे शील पालवानो म्होटो फायदो छे ते अटकी जाय. ने धणीएक विधवाओ तो भावे के म्हारे ज्यां सुधी स्वामीनो योग हतो त्या सुधी तो म्हारं चित्त विषय त्याग करवानुं थतुं न हतुं. पण हवे सहजे स्वामीन कारण छूटी गयु एटले सहज म्हाराथी शील पलशे एवी सुंदर भावनाओ भावे छे. आ. माने निर्मल करे छे ते नजरे जोइए छीए. वली जेनी नात्यमा नात्रां थाय छे तेने आ दशा बनवानी नथी तेमां पण कुलवान होय छे ते नानां करता नथी ते पण जोइए छीए तेथी एमां लाभ दीवे छे ते योग्य नथी. प्रश्न:-१३७ आत्मा निर्विकल्प छे के सविकल्प छे ? उत्तरः आत्मा निर्विकल्प छे. विकल्प करवा ते जडनी संगते आमानो उपयोग बगडवाथी थाय छे. प्रश्न:-१३८ बार भावना तथा चार भावना भाववी एमां पण विकल्प करवामां आवे छे १ उत्तरः-ए विकल्प छे ते निर्विकल्पदशाने लावनार छे. ए प्रथम अवस्थाए आदरवा योग्य छे. ज्यारे शुक्ल ध्याननो बीजो पायो ध्याय के, ते वखत अभेद ज्ञान थाय छे. त्यारे विकल्प टली जाय छे. पण शुक्ल 4. पहेलो पायो ध्यातां पहेलां श्रुतज्ञान- चितवन थाय छे, तेनाथी असंग अनुष्ठानरूप एटले कुंभार जेम चक्र हलावे पछी एनी मेले चक्र फर्या करे, तेम श्रुतज्ञानथी विचार्या पछी सहजदशा प्रगट थाय छे तेथी खभाविक ध्यान थाय त्यारे अभेद ज्ञान प्रगट थाय छे. सांथी निर्विकल्प दशाना अंश प्रगट थता जाय छे पण ज्यारे बीजो पायो ध्याय छे त्यारे विशेष निर्विकल्पता प्रगटे छे अने ज्यारे केवलज्ञान प्रगटे छे त्यारे पूर्ण निर्विकल्प दशा प्रगटे छे. प्रश्नः-१३९ केवलज्ञान तो निविकल्पदशाथी प्रगटे छे त्यारे विकल्प
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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