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________________ उत्तर:-श्रावक अथवा साधुए दरेक चीज गुरु पासे भणवी पण पोतानी मेले भणवी नहि. ते सारु विशेषावश्यकमां कयुं छे जे सामायक अध्ययन भणq ते गुरु पासे, पण पुस्तक चोरीने नहि. माटे पोतानी मेले तो चाय नहि, ने सूत्र वांचे तेनो आशय बराबर बेसे नहि तो उत्सू. त्रनो दोष लागे ने वली श्रावकने आवश्यकसूत्र तथा दशवकालीकनां चार अध्ययन सुधी तथा आवश्यकसूत्र भणवानी आज्ञा प्रभुए करी छे, वली श्रावकने अर्थना ग्रहण करनार कह्या छ, एटले गुरु अर्थ संभलावे ते सांभले एटले श्रावकने सूत्र वांचवानी आज्ञा संभवती नथी, प्रकरण ग्रंथ घणा छे तेमा पूर्वाचार्य सर्व रचना लावी मूकी छे ते भणे पण छे. इहां कोइने शंका थशे जे आनंदादिक श्रावक शुं भणता हशे? ते विषे विशेषावश्यकमां श्रुतज्ञानना भेद चाल्या छे, तेमा उपांगसूत्रनो अधिकार पाने १७१ मे छे तेमां प्रश्न थयु छ जे उपांगादिकनी रचना शुं करवा करी ? तेना उत्तरमा कह्यु छ जे साध्वीने दृष्टिवाद भणावq नहि ने ते दृष्टिवादना भाव जाण्या विना बोध केम थाय ? ते सारु साध्वी श्रावकने अर्थे उपांगादिकनी रचना करी छे. आ जग्या उपर श्रावकने। शब्द छे पण उपांग छेद सूत्र विगेरे भणववा सारु व्यवहार सूत्रमा मु. निने केटला केटला वर्षनी दीक्षापर्याय थाय सारे भणाववां कह्यां छे तेथी उपांगनी पण श्रावकने आज्ञा नथी; पण श्रावक पयन्ना भणता हशे एम जणाय छे. हालमां पण चउसरण पयन्नादिक श्रावक भणे छे. तेम ते पुरुषो भणता हशे एम लागे छे. इहां कोइ एम कहेशे जे तमोए सूत्रनी साख्यो नांखी छे ते केम जाणी १ ते विशे जाणवू जे म्हारी बालबुदिना वखतमां मारा मनमा एम आव्युं हतुं जे अर्थना ग्रहण करनार कह्या छे, माटे आपणे मूलसूत्र न वांचवां. अर्थ जोवाने शुं हरकत छ? एम जाणी सूत्रो वांच्या हता. पण सूत्रना गहन अर्थ जोइ हवे म्हारा मनमा आवे छे के वीतरागना आगमनी गहन शैली मलीन आरंभी संसार मूञ्छित श्रावक शी रीते जाणे १ तो कंइन कंइ धारण करे तो श्र
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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