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________________ (१०) उत्तर:-श्राद्धविधिमा एकला दिवसना चार प्रहरनो काल कह्यो तथा अहो रात्रीना पौषधनो आठ प्रहरनो काल कह्यो छे. पौषध लेवानो.विघि पाने २४५ मे बताव्यो छे. ते प्रथम पौषध लेइ, पछी राइ पडिकमj पडिलेहण करे ए रीते छे. ने ए रीते करे तो जे पौषधनो चार प्रहरनो काल परो थाय. ने मोडो ले ने मोडो पारे ते वात पाठमां नथी. वास्ते सूर्य उदय अगाउ पौषध लेवो तेज योग्य छे, ने पंचाशकमां पौषध पाली पूजा करी पछी पौषध लेवानी मर्याद बतावी छे, पण ते पडिमाधर श्रावकना संबंधमां छे, कारण जे पडिमाधरने पाछली पडिमा सहित छे, वास्ते ते पडिमा साचवी तेथी तेम विधि दर्शाव्यो छे. पडिमाधर शिवायना श्रावकने सारु तो श्राइविधिमां कडं छे ए ज रीते छे. प्रश्नः-११० पौषधमा चोमासामा श्रावक भूमि उपर संथारो करे के पाट उपर ? . उत्तरः-चोमासामा तो पाट उपरज संथारो करवो कह्यो छे, विचार रत्नाकर ग्रंथ कीर्तिविजयजी महाराजनो करलो छे, तेमां आवश्यकनी चूर्णिनो पाठ लख्यो छे. तेमां काट आसनना आदेश लेवाना कह्या छे. तेम श्राद्धविधिमां पण कर्तुं छे. वली श्रावकने सारु पाट पाटला करावी ने उपाशरे श्रावके मूकवा एम पण अधिकार श्राद्धविधिमां छे. वली हुंडी पत्र करीने प्रश्नरूप ग्रंथ छे तेमां चोमासामा पाट पाटला न वापरे तेने पासत्थो कह्यो छे. प्रश्नः-१११ साधुजी पुस्तक राखे के नहि ? उत्तरः-आ कालमा साधुजी पुस्तक राखे ए अधिकार तत्वार्थमा पाने २८५ मे छे. तेमां जणाव्यु छे जे दुषम काले धारणानी खामी तेथी आज्ञा करी छे; वास्ते पुरतक राखवाने हरकत नथी, पण पोताना शिष्य सारा न होय ते छतां ते पुस्तक शिष्यने आपी जवं, ने ते वेची खाय ए योग्य नथी. ए पुस्तक संघना रुपियाथी लीधुं छे तेथी पुस्तक उपर मालकी संघनी राखवी के जेथी बगाड थाय नहि. शिष्यने भणवा जोइए
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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