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________________ (१६२) उत्तरः-भगवतीजीमां पाने ४६१ मे अधिकार छे. त्यां कहूं के जे मूल गुण पच्चल्खाणी करतां उत्तर गुण पच्चख्खाणी असंख्याता छे; पण तीर्यच पण श्रावकनां व्रत ले छे, तेथी असंख्यात गुण कह्या छे. टीकाकारे वि. शेषपणे कयुं छे जे मध, माखण, मांस, मदिराना नियम करे ते पण उ. त्तर गुण पञ्चख्खाणी कहीए, एवी रीते त्या अधिकार छे. प्रश्नः-९७ छठा आरामा जे जीवो थशे तेनु केटलु आउखु तथा ते समकिती के मिथ्याती ? उत्तरः-छठा आराना जीवनुं आउखु १६ थी २० वरस सुधी- कां छे. प्राये समकित रहित त्यां वसशे ए विगेरे सर्वे अधिकार भगवतीजी छापेली प्रतमा पाने ४७९ मे छे त्यांथी जोइ लेवु.. प्रश्नः ९८ पांच इंद्रीमां कामी इंद्री कइ ने भोगी कइ ? उत्तरः-श्रोत इंद्री, चक्षु इंद्री कामी, तथा फरस इंद्री, रसइंद्री, प्राणेद्री ए भोगी, कारण जे ए इंद्रीए भोगववाथी सुख छे. एनो विस्तारे अधिकार भगवतीजीमां पाने ४८७ मे छे. प्रश्नः-९९ श्रावक संथारो करे त्यारे सर्वथा पांचे व्रत आदरे? उत्तरः-वरुननाग नटुआए सर्वथा प्राणातीपात प्रमुखनो त्याग कयों छे. ए अधिकार भगवतीजीमां पाने ५६० मे छे वास्ते करी शके एम समजाय छे. प्रश्नः-१०० श्रावक रात पोसो करे तो दीवो राखे के नहि ? उत्तरः-श्रावक पौषधमां दीवो राखे नहि, कारण जे श्रावक पडीकमणुं करे छे त्यारे बे घडीनुं समायक छे. तेमां काउसग करे चे, त्या रे पण आगार राखे छे जे दीवो विजलीनी उजेइ आवे तो वस्त्र ओढवू तो काउसग भागे नहि, ए सारु आगार राखे छे. हवे विचारो जे ओचिंतो कोइ लावे तो वस्त्र ओढवू, तो रखाय तो केम? इहां शंका थशे जे उजेइ ते अजवालुं तेमां शा वास्ते वस्त्र श्रोढवू ? तेनुं समजवू जे उजेइछे ते अनिकायना जीव छे. तेने आपणो फरस थवाथी ते जीव विनाश पा
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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