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________________ कडं ते सम्यकदृष्टी पण नथी ने त्यां सोनइआनी वृष्टि थइ छे. ए लेनार असंजमी ज छे अने एम मुनीयोनो पण महिमा करवा सम्यकद्रष्टी देवता एवी भक्ति करे छे तो जे जे कृत्य सम्यक्दृष्टिए करेलां प्रभुए निषेध्यां नथी तो ते आचरवा जोग्य गृहस्थने छे. वली रायपसेणी सूत्रमा प्रदेशि राजानो अधिकार छ तिहां पण प्रदेशिराजाने केशि गणधर महाराजे धर्म पाम्या पछी कडं जे-हे प्रदेशि! तुं रमणिक थइने पछी अ रमणिक न थतो. ते वखते प्रदेशि राजाए कहुं छे जे हुं म्हारी ऋद्धिना चार भाग करीश तेमांथी एक भाग दानशालामां आपीश. आ अधिकार रायपसेणी सूत्रमा पाने २४० मे छापेली प्रतमा मूलपाठमां छे. आथी विचारो जे दाननो निषेध छे, ते मात्र कुपात्र ने सुपात्र बुद्धिए आपq ते छे पण अनुकंपाए दुःखी जाणीने आपq तथा शासन प्रभावनाए आपq तेमां कोइ ठेकाणे निषेध नथी. आगमनी प्ररुपणा गुरुमुखे धारीने करे तोज बराबर समजाय. वली आत्मानो दानगुण तो स्वभाविक छे. पण ज्यां सुधी दान अंतराय होय त्यां सुधी वस्तु बराबर समजाय नही.दान देवू नहीं एवुज मनमा आवे. वली ज्या ज्या तीर्थकर महाराज वा, आचारज महाराज समोसरया छे ते वधामणी लावनारने प्रीतिदान बहु प्र. कारे आप्यां छे. तेमांथी एक अधिकार लखुं छु. चित्रसारथीए केशि महाराज समोसस्या सारे खबर लावनार वनपालकने दान आप्युं छे. ते अधिकार रायपसेणीजीनी छापेली प्रतमां पाले २३२ मे छे त्यांथी जोइ लेवू. ए दानमा लाभ न होत तो सभ्यदृष्टी केम दे ? ते पण इहां प्रभुनी भक्तिभावनो उत्साह छे ते मोटो लाभ छे तेथी दान दीघां छे. ए दानमां धर्म नथी एम कहे तेणे विचार जोइए जे भगवंतने वांदवा जवाना रथनुं नाम, धर्मरथ मूलपाठमां बहु ठेकाणे कडुं छे. तेमांथी ज्ञाता सू त्र छापेलामा पाने १४९ मे छे. माटे हरेक वस्तु बधा शास्त्रनो विचार करीने ग्रहण करवी. दान विषे एवं कहे छे के असंजमीने दान दइए तेथी ते पुष्ट थाय ने आरंभ करे तेनी हिंसा लागे वारते देवू नहीं. तेने
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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