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________________ (१४८) नी नाडी एटले रस लेवानी नाडी नाभी आगल रहे थे, ने पूत्रनी रस हरनी नाडी पुत्रनी नामी आगल रहे छे. ते पुत्रनी नाडीनो संबंध मातानी रसहरनी नाडी साथे रहे छे. तेथी मातानी रसहरनी नाडीथा पुत्र आहार ले, ने सघला शरीरमां प्रणमे, ए रीते आहार ले. माताना रुधीरनो भाग उत्पत्ति अवसरे वधारे होय तो पुत्री थाय. पिताना वीर्यनो भा ग वधारे होय तो पुत्र थाय. बे सरखा होय तो नपुंसक थाय. ए पण दर्शाव्यु छे. वली मांस, लोही, माथा मांहिनु भेजें ए माताना रक्तथी थाय छे. तेथी मातानां अंग कह्यां छे. वली हाडकां, हाडकां माहेली मिज तथा रोम ए पिताना वीर्यथी थाय छे माटे ए पीतानां अंग कह्यां छे. आ रीते घणुं स्वरूप एमां दर्शाव्युं छे. तथा जोगशास्त्रमा हेमाचार्यजी महाराज तथा भवभावना ग्रंथ मल्लधारी हेमचंद्र आचार्यनो करेलो छे, तेमां पण दर्शावेल छे, त्यांथी विस्तारे जोइ लेवू. प्रश्नः-८२ वासुदेव नरके जाय तेनुं शुं कारण ? उत्तरः-वासुदेव पुद्गलीक सुखनुं नियाj करे छे, तेथी संजम धर्म श्राराधन थाय नहीं. कृष्णवासुदेवे भगवंत नेमनाथजी महाराजने पुच्यु जे मने दीक्षा लेवानुं मन केम थतुं नथी ? त्यां भगवते कह्यं जे पाछले भवे तें नियाj करयुं छे, तेथी आ भवमां संजम उदय आवशे नहीं, पण तुं नरकथी नीकली तीर्थकर थइ मुगतें जइश. एवी रीते अंतगड दशांगनी लखेली प्रतमां पाने २३ मे अधिकार छे. वसुदेवहिंडमां पांच भव कह्या छे. तत्व केवलीगम्य छे. प्रश्नः-८३ पिंडस्थ ध्यान शी रीते करवू ? उत्तरः-जोगशास्त्रमा हेमाचार्यजी महाराजे घणा प्रकारे बताव्यु छे, तेमाथी बे रीतो लखु छ, अरिहंतनो अ नाभीने विषे थापबो, सिद्ध म. हाराजनी सि मस्तकने विषे स्थापवी, प्राचार्य महाराजनो आ मुख उ पर स्थापवो. उपाध्यायजीनु उ हृदये थापवू अने साधुजी महाराजनो सा कंठे स्थापवो. ए रीते पांचे अक्षर स्थापी तेर्नु एकाग्रपणे ध्यान करखं. ए
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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