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________________ (8) स्त्रीगमन ने धन विगेरे परिग्रहना त्यागी होय, निरंतर शास्त्राध्ययन करता होय तेमने गुरु मानवा, तेमनी पासे धर्मोपदेश सांभलवो. १७ प्रश्न:- पूर्वोक्त सर्व गुण न होय, पण शास्त्रोपदेश करी जाणता होय तो तेमनी पासे धर्म सांभलवामां शुं हरकत छे ? उत्तरः-उपदेश करनार मनुष्य उत्तम गुणवालो होय, तोज श्रोताओना मन उपर सारी असर करी शके छे अने पोताना उत्तम गुणोनी छाप सामा घणीना हृदय उपर पार्डी शके छे; परंतु जो उपदेशक गुण विहीन होय तो "परोपदेशे पांडित्यम्" जेवुं थाय छे, पोते मिथ्याडोल धारण करी भवभ्रमण वधारता जाय छे श्रने श्रोताओ पोतानो आत्मा सुधारी शकता नथी; कारण के, गुरु कहे छे पण तेमनाथी पाली शकातुं नथी, तो आपणे धर्म शी रीते पालीए ? एम मनमां श्राववाथी लाभ थाय नहीं. १८ प्रश्नः - यत् किंचित् सारभूत धर्मतत्व शुं छे ? ते कहो. उत्तर:- प्रथम तो धर्मनी योग्यता करवी. १९ प्रश्नः - घर्मनी योग्यता शी रीते थाय ? उत्तरः- मार्गानुसारीना गुण उत्पन्न करवाथी धर्मनी योग्यता थाय. २० प्रश्नः - मार्गानुसारीना गुणनुं विवेचन करो. उत्तरः- प्रथम न्यायविभव - सर्व प्रकारना व्यापारमां न्याय पूर्वक ववुं श्रन्यायथी चालवु नहीं, नोकरी करतां धणीना सोपेला कार्यमांथी पैसा खाइ जवा नहीं, लांच खावी नहीं, ओछी समजवाला मनुष्यने छेतरवा प्रयत्न करवो नहीं, व्याज वटंतर करनारे सामा धणीने छेतरी व्याजना पैसा वधारे लेवा नहीं, माल भेलसेल करीने बेचवो नहीं, सरकारी नोकरी करनार मनुष्ये धगीने व्हाला थवा सारू लोको उपर काय - दा विरुद्ध जुलम गुजारवो नहीं, मजूरी वा कारीगिरीनो धंघो करता रोज लइ काम बराबर करवुं, खोटं दिल करवुं नहीं, नात अथवा मानमां शेठाइ करतो होय तो, पोताथी विरुद्ध मतवालाने द्वेष बुद्धिथी
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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