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________________ भाविक गुण प्रगट थाय, ने सिद्धिमां वास थाय. ए आदि घणुं स्वरूप शास्त्रमा छे ने भावे. अगीयारमी बोधिबीज-समकित भावना. ते-जीव समकित नहि पाम्यो तेथी अनेक जन्म मरण करयां, वस्तुने अवस्तुपणे मानी, हवे हालमा म. नुष्य जन्म पाम्यो छे. वीतराग भाषित शास्त्रनो योग पण मल्यो छे; माटे ते गुरु महाराज पासे श्रवण करी यथार्थ वस्तुधर्म समजी तत्वातत्वनो विचार करी जेम जे पदार्थ छे तेनी श्रद्धा कर के सहजे जड पदार्थ उपर हारो राग बंधाइ रह्यो छे, ते उतरी जाय ने सहजे हारा आत्मस्वभाव. मां प्रीती थाय. आत्माने आत्मा रीते जाण्या विना एकली व्यवहार किया जीवे धणी वार करी, तेथी पुगलिक सुख मल्या, पण श्रामिक सुख मल्यु नहि. वास्ते हे चेतन ! हवे अवसर मल्यो छे, माटे बोधिबीज-समकित प्राप्त कर के जेथी सर्व करणी लेखे थाय अने भवचक्रनु भ्रमण मटी जाय. गट थाय, एवो यत्न कर. प्रथम जेम बने तेम धननी उपाधि छोड, एवी रीते बोधिबीज भावना भावे. . बारमी धर्मभावना ते वीतराग कथित धर्म मलवो दुर्लभ छे. रागी द्वेषीना कहेला धर्मथी आत्मकार्य थयुं नथी ने थवानुं पण नथी ने तीथैकरदेव छे ते राग द्वेष रहित छे. तेमना भाषेला धर्मथी पण वीतरागता भासन थाय छे. माटे एवा वीतरागना धर्मनी जोगवाइ मलवी मुं. श्केल छे, ते भाग्योदयथी मली छे तो हवे प्रमाद छोडी जेम जेम राग देषनी प्रकृति घटे, ने आत्मानुं शुद्ध स्वरुप प्रगट थाय एवो यत्न कर. प्रथम जेम बने तेम उपाधि छोड. धननी विषयनी वांछना छोडीने निवाह जेटली प्रवृत्ति कर के, तने अवकाशनो वखत मले. अवकाश मले ते वखते एकांते बेसीने सर्व उपाधिमांथी चित्त खशेडी त्हारा आत्मानो विचार कर के हे चेतन ! त्हारो शुं स्वभाव छ ? ने रात्री दिवस शुंप्र. वृत्ति करी रह्यो छे ? तुं जड प्रवृत्ति करे छे, वास्ते समये समये नवां-कर्म आवे छे, ने जे जे जड प्रवृत्ति ते म्हारी नहि. म्हारो तो जाण्यानो
SR No.010830
Book TitlePrashnottar Ratna Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnupchand
PublisherJain Prasarak Gyanmandal
Publication Year1906
Total Pages300
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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