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________________ निरतिवाद २२ ] देने वाला उस हालत मे ही अपराधी समझा जावेगा जब रिश्वत देकर कोई अनुचित लाभ चाहेगा । भुलाकर डराकर या उसकी स्वाभाविक सुविधा से वचित कर अगर रिश्वत ली गई होगी तो रिश्वत देनेवाला अपराधी न माना जायेगा | ग- वेतन निम्न लिखित मासिक दरके अनुसार "" मालूम घ- सरकारी मुलाजिमों को वेतन के अतिरिक्त निम्न लिखित सुविधाएँ और मिलेगी । राष्ट्राध्यक्ष- मकान, मकान की सफाई आदि को नौकर, बोडीगार्ड, मोटर आदि सवारी, उसके लिये नौकर तथा पेट्रोल आदि । ङ -- पेन्शन मिलेगी । रहेगा । राष्ट्राध्यक्ष १०००) प्रान्ताध्यक्ष ५०० ) से ७००) तक राष्ट्रीय धारासभा के मंत्री आदि ५००) से ६००) प्रान्तीय धारासभा के मंत्री आदि ४५० ) से ५०० ) हाइकोर्ट जज ४५०) से ६००) तक कलेक्टर शेसन जज आदि २५०) से ३५०) तक प्रोफेसर सबजज आदि १००) से २०० ) तहसीलदार आदि ७५) से १००) तक नायब तहसीलदार ५०) से ७५) पुलिस इन्स्पेक्टर ४० ) से ६५) हॉइस्कूल के मास्टर ४० ) से १००) मिडिल स्कूल के मास्टर २५) से ३५) तक प्रायमरी स्कूल १६ ) से ३०) तक 35 35 यह एक साधारण रूप रेखा है । इससे दृष्टि- होगा। पति के कुटुम्बियो का नहीं । कोण होता है । 1 प्रान्ताध्यक्ष आदि को कुछ कम मात्रा मे इसी के अनुसार मंत्री आदि का भी विचार किया जायगा । सबजज आदि को रहने के लिये मकान मुफ्त दिया जायगा । ८ नारीका अधिकार क - प्रत्येक विवाह के समय स्त्री-वन नियत किया जायगा । उस पर हर हालत मे जीवन भर नारी का अधिकार रहेगा । ख -- उत्तराधिकारित्व मे पुत्रो के समान पत्नी का भी एक भाग रहेगा । ग --माता के स्त्रीवन पर उसकी पुत्रियों का अधिकार होगा । पुत्री न हो या जीवित न हो तो वह पुत्रों को मिलेगा । पुत्री के पति पुत्र आदि को नही । माता अगर अपना स्त्रीधन पुत्रियो को न देना चाहे तो नही भी दे सकती है। माता की इच्छा मुख्य है 1 घ- नारी अगर विशेप अर्थोपार्जन करती हो तो १५) मासिक आमदनी के अतिरिक्त जितनी आमदनी होगी उस पर उसी का अधिकार होगा । १५) कुटुम्ब खर्च के लिये कम किये गये है । ड--पति के अगर कोई सन्तान न हो तो पति की समस्त सम्पत्ति पर पत्नी का अधिकार निरतिवाद का यह साकेतिक रूप है। कुछ बात तो मैंने यहा कुछ स्पष्टता से लिखीं है जिससे निरतिवाद की व्यावहारिकता को लोग समझ सके और कुछ साधारण रूप में ही लिखदी है । समय आने पर इनके उपनियम बनाने मे देर न लगेगी । कुछ बाते ऐसी है जिनको मैंने यहा लिखा नही है पर वे आपसे आप समझी जा सकती है। जैसे निरतिवादी समाज मे सट्टा जुआ आदि बन्द रहेगा, भिक्षा माँगना अपराध समझा जायगा । अमुक योग्य साधुओ को ही आवश्यकतावश इसकी पर्वानगी दी जा सकेगी । लोग सग्रहशील
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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