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________________ वीसइमो समवाओ बीसवां समवाय १. वीसं असमाहिठाणा पण्णता, तं जहा१. दवदवचारि यावि भवइ, २. अपमज्जियवारि यावि भवइ ३. दुप्पमज्जियचारि यावि भवइ, ४. अतिरित्तसेज्जासणिए, ५. रातिणियपरिभासी, ६. थेरोवघातिए, ७. भूमोवघातिए, ८. संजलणे, ६. कोहणे, १०. पिटिमंसिए, ११. अभिक्खरणं-अभिक्खणं, पोहारइत्ता भवए, १२. णवाणं अधिकरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाएत्ता भवइ, १३. पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय-विनोसवियाणं पुणोदोरेता भवइ, १४. ससरक्खपाणिपाए, १५. अकालसम्झायकारए यावि भवइ, १६. कलहकरे, १७.सहकरे, १८. झझकरे, १६. सूरप्पमाणभोई, २०. एसणाऽसमिते प्रावि भवद । १. असमाधि के बीस स्थान प्रजप्त है। जैसे कि१. दव-दव-चारी/गीघ्रगामी होता है, २. अप्रमाजितचारी होता है, ३. दुष्प्रमाजितचारी होता है, ४. अतिरिक्त शय्या-प्रासन रखता है, ५. रलिक परिभापा/वारणी-असंयम, ६. स्थविर-उपघात/वृद्ध-उपेक्षा, ७. भूत-उपघात/स्थावर-हिमा, ८. संज्वलन, ६. कोष, १०. पृष्टिमंमा | निन्दा, ११. प्रतिक्षण प्रागेप लगाता है, १२. अनुत्पन्न नये अधिकरणों को उत्पन्न करना, १३. क्षमित और उपशान्न पुराने अधिकरणों को पुनः तैयार करता है, १४. हाथ-पैर रजमाहित रखता है, १५. अकाल/अनमय में स्वाध्याय करता है, १६. यालह करता है, १७. शब्द/गोरगुल करता है, १६. झंझट करता है, १६. सूर्य-प्रमाण भोजन/दिनभर खाते-पीते रहता है, २०. एपरणा-समिति का पालन नही करता है। २. मुणिसुब्बए पं परहा वीस धणूई उद उच्चत्तणं होत्या। २. अर्हत् मुनिमृबन नाई की दृष्टि में बीस धनुप ऊँचे थे । ममवाय-सुतं ममनाय-२०
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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