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________________ ६. श्रत्थिनत्थिष्पवायस्स णं पुव्वस्स अट्ठारस वत्यू पण्णत्ता । ७. धूम पहा णं पुढवी अट्ठारसुत्तरं जोयणसयसहस् बाहल्लेगं पण्णत्ता । ८. पोसासाढेसु णं मासेसु सइ उक्कोसे अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ सइ उक्कोसेणं अट्ठार समुहत्ता रातो भवइ । ६. इमीसे गं रयरगप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयारणं अट्ठारस पलिप्रोमाई ठिई पण्णत्ता | १०. छट्ठी पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं अट्ठारस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । ११. असुरकुमाराणं देवाणं प्रत्येगइयाणं अट्ठारस पलिश्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पे प्रत्येगइ - याणं देवानं अट्ठारस पलिओमाई ठिई पण्णत्ता | १३. सहस्सारे कप्पे देवाणं उक्कोसेरगं अट्ठारस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । १४. आणए कप्पे देवारणं जहांरेंगं श्रट्ठारस नागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ममवाय-मुत्तं ૬૬ ६. ग्रस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व के वस्तु / अधिकार अठारह प्रज्ञप्त हैं । ७. घुमप्रभा पृथिवी का बाहुल्य एक शत- सहस्र / एक लाख अठारह हजार योजन प्रज्ञप्त है । ८. पौष और ग्राषाढ़ माह में दिवस उत्कृष्टतः अठारह मुहूर्त का होता हैं और रात उत्कृप्टतः अठारह मुहूर्त की होती है । ६. इम रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नैरयिकों की उत्कृष्टतः अठारह पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । .. १०. छठी पृथिवी [तमः प्रभा ] पर कुछेक नैरयिकों की अठारह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ११. कुछेक असुरकुमार देवों की अठारह पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १२. सौधर्म - ईशान कल्प में कुछेक देवों की अठारह पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १३. सहस्रार कल्प में देवों की उत्कृष्टतः अठारह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है, १४. आनत कल्प में कुछेक देवों की जघन्यतः/न्यूनतः अठारह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है | समवाय- १८
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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