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________________ कायपोगे, १३. आहारयसरीरकायपोगे, १४. आहारयमीससरीरकायपोगे, १५. कम्मयसरीरकायपोगे। प्रयोग, १३. आहारक शरीरकायप्रयोग, १४. पाहारकमिश्र शरीरकाय प्रयोग और १५. कार्मण शरीरकायप्रयोग। १०. इमीसे गं रयणप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस पलिमोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १०. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नरयिकों को पन्द्रह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। ११. पंचमाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। ११. पांचवीं पृथिवी [ धूमप्रभा ] पर कुछेक नैरयिकों की पन्द्रह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १२. असुरकुमाराणं देवाणं प्रत्येगइ- याणं पण्णरस पलिभोवमाई ठिई पण्णता। १२. कुछेक असुरकुमार देवों की पन्द्रह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १३. सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु अत्थेगइ याणं देवारणं पण्णरस पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। १३. सौधर्म-ईशान कल्प में कुछेक देवों की पन्द्रह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १४. महासुक्के कप्पे अत्थेगइयाणं देवाणं पण्णरस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता। १४. महाशुक्र कल्प में कुछेक देवों की पन्द्रह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १५. जे देवा गंदं सुणंदं गंदावत्तं गंदप्पभं णंदकंतं गंदवण्णं णंदलेसं णंदज्झयं गंदसिंगं गंदसिट्ठ णंदकूडं णंदुत्तरवडेंसगं विमाणं देवताए उववण्णा, तेसि गं देवाणं उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १५. जो देव नन्द, सुनन्द, नन्दावर्त, नन्द प्रभ, नन्दकान्त, नन्दवर्ण, नन्दलेश्य, नन्दध्वज, नन्दशृंग, नन्दसृष्ट, नन्दकूट और नन्दोत्तरावतंसक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः पन्द्रह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १६. ते णं देवा पण्णरसण्हं प्रद्धमासाणं प्राणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा। १६. वे देव पन्द्रह अर्धमासों में आन/आहार लेते हैं, पान करते है, उच्छ वास लेते है, निःश्वास छोड़ते हैं। समवाय-सुत्तं समवाय-१५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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