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________________ ३. अग्गेणीअस्स णं पुवस्स चउद्दस पत्थू पण्णत्ता। ३. अग्रायणीय-पूर्व के चौदह वस्तु/ अधिकार प्रज्ञप्त है। ४. समणस्स णं भगवनो महावीरस्स चउद्दस समणसाहस्सोमो उक्कोसिमा समणसंपया होत्था। ४. श्रमण भगवान् महावीर की चौदह हजार श्रमणों की उत्कृष्ट श्रमणसम्पदा थी। ५. कम्मविसोहिमग्गणं पडुच्च चउद्दस जीवट्ठाणा पण्णत्ता, तं जहामिच्छविट्ठी सासायणसम्मदिहि सम्मामिच्छदिद्धि अविरयसम्मदिद्धि विरयाविरए पमत्तसजए अप्पमत्तसंजए नियट्टिवायरे अनियट्टिबायरे सुहुमसंपराए-- उवसमए वा खवए वा, उवसतमोहे सजोगी केवली अजोगी केवली । ५. कर्म-विशुद्धि-मार्ग की अपेक्षा मे जीवस्थान/गुणस्थान चौदह प्रज्ञप्त है। जैसे किमिथ्यादृष्टि, सासादन सम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अविरत सम्यग्दृष्टि विरताविरत, प्रमत्तसंयत, अप्रमत्तसंयत, निवृत्तिबादर, अनिवृत्तिवादर, सूक्ष्मसम्पराय-उपशामक या क्षपक, उपशान्तमोह. क्षीणमोह, मयोगिकेवली और अयोगिकेवली । ६. मरहेरवयाोणंजीवानो चउद्दसचउद्दस जोयणसहस्साई चत्तारि य एगुत्तरे जोयणसए छच्च एगूणवोसे भागे जोयरणस्स प्रायामेणं पण्णत्तानो। .६. भरत और ऐरवत की जीवा/लम्बाई चौदह-चौदह हजार, चार सौ एक योजन और योजन के उन्नीस भागों में से छह भाग कम आयाम/लम्बी प्रज्ञप्त है। ७. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतवक्क बट्टिस्स चउद्दस रयणा पण्णता, तं जहाइत्योरयणे सेणावइरयणे गाहावहरयणे पुरोहियरयणे वड्डइरयणे मासरयणे हत्यिरयणे असिरयणे बंडरयणे चक्करयणे छत्तरयणे चम्मरयणे मणिरयणे कागिणिरयणे। ७. प्रत्येक चातुरन्त/नतुर्दिक चक्रवर्ती राजा के चौदह रत्न प्राप्त है। जैसे किस्त्रीरत्न, सेनापतिरत्न, गृहपतिरत्न, पुरोहितरत्न, वर्धकीरत्न, अश्वरत्न, हस्तिरत्न, अमिरत्न, दंडरत्न, नररत्न, छत्ररत्न, चर्मरस्न, माग्न और काकिरिगरत्न । समवाय-मुत्त ममवाय-१४
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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