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________________ १४. ते णं देवा एक्कारसह अद्ध- मासाणं प्राणमंति वा पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा । १४. वे देव ग्यारह अर्धमासों/पक्षों में आन/आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छ्वास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते १५. तेसि णं देवारणं एक्कारसण्हं वास- सहस्सारणं प्राहारठे समुप्पज्जइ। १५. उन देवों के ग्यारह हजार वर्ष में आहार की इच्छा समुत्पन्न होती १६. संतेगइया भवसिद्धिया जीवा, जे एक्कारसहि भवग्गहहि सिज्झिस्संति बुझिस्सति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति । १६. कुछेक भव-सिद्धिक जीव हैं, जो ग्यारह भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे। समवाय-११
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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