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________________ प्रकाशकीय आगमवेत्ता महोपाध्याय श्री चन्द्रप्रभसागर जी सम्पादित-अनुवादित 'समवायसुत्तं' प्राकृत-भारती, पुष्प-७४ के रूप में प्रकाशित करते हुए हमें प्रसन्नता है। आगम-साहित्य जैनधर्म की निधि है। इसके कारण आध्यात्मिक वाङ्मय की अस्मिता अभिवद्धित हुई है। जैन-पागम-साहित्य को उसकी मौलिकताओं के साथ जनभोग्य सरस भाषा में प्रस्तुत करने की हमारी अभियोजना है । 'समवायसुत्तं' इस योजना की क्रियान्विति का अगला चरण है । 'समवाय-सुत्तं' जैन आगम-साहित्य का प्रमुख ग्रन्थ है। इसमें जैन धर्म के इतिहास के परिवेश में जिन सूत्रों एवं सन्दर्भो का आकलन हुआ है, उसकी उपयोगिता आज भी निर्विवाद है । इसके अनेक सूत्र वर्तमान अनुसन्धित्सुओं के लिए एक स्वस्थ दिशा-दर्शन हैं। ग्रन्थ के सम्पादक चन्द्रप्रभजी देश के सुप्रतिष्ठित प्रवचनकार हैं, चिन्तक है, लेखक हैं, कवि हैं । आगमों में उनकी मेधा एवं पकड़ तलस्पर्शी है । उनकी वैदुष्यपूर्ण प्रतिभा प्रस्तुत आगम में सर्वत्र प्रतिविम्वित हुई है। अनुवाद एवं भाषा-वैशिष्ट्य इतना सजीव एवं सटीक है कि ग्रन्थ की वोधगम्यता सहज, स्वाभाविक एवं प्रभावक वन गई है। मूल पाठ की विशुद्धता ग्रन्थ की अतिरिक्त विशेषता है। गरिणवर श्री महिमाप्रभसागरजी ने इस आगम-प्रकाशन-अभियान के लिए हमें उत्साहित किया, एतदर्थ हम उनके हृदय से आभारी हैं। पारसमल भंसाली अध्यक्ष श्री जैन श्वे. नाकोड़ा पाव. तीर्थ, मेवानगर प्रकाशचन्द दफ्तरी सचिव श्री जितयशाश्री फाउण्डेशन कलकत्ता देवेन्द्रराज मेहता सचिव प्राकृत भारती अकादमी जयपुर
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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