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________________ ६. पंच निज्जरवाणा पण्णता, तं जहापारणाइवायानो वेरमणं मुसावायानो वेरमरणं अदिण्णादाणामो वेरमरणं मेहुरणानो वेरमरणं परिग्गहारो वेरमरणं। ६ निर्जरा-स्थान / कर्म-क्षय-साधन पांच प्रजप्त हैं। जैसे किप्राणातिपात-विरमरण, मृपावादविरमण, अदत्तादान-विरमण, मथुन-विरमण, परिग्रह-विरमण । ७. पंच समिईओ पण्णतामो, तं जहाइरियासमिई मासासमिई एसणासमिई प्रायाण-मंड-मत्तनिवखेवरणासमिई उच्चार-पासवरणखेल-सिंघाण-जल्ल-पारिट्ठावणियासमिई । . समिति /संयम-प्रवृत्ति पांच प्रजप्त है। जैसे किईर्या-समिति/पथदृष्टि-संयम, भाषासमिति/वाणी-संयम, एपणा-समिति/ मिक्षा-संयम, आदान-मांड-मात्रनिक्षेपणा समिति / स्थापन-संयम, उच्चार/मल प्रनवण/मूत्र श्लेष्म / कफ सिंधारण / नासिकामल जल्ल/ शरीर-मैल प्रतिष्ठापना-समिति/ परित्याग-संयम । ८. पंच अस्थिकाया पण्णता, तं जहाधम्मत्थिकाए अधम्मत्यिकाए पागासत्यिकाए जीवत्यिकाए पोग्गलत्यिकाए। ८. अस्तिकाय/प्रदेशवान् पाँच प्रजप्त हैं। जैसे किघर्मास्तिकाय/गमन, अधर्मास्तिकाय/ स्थिति, माकाशास्तिकाय/स्थान-दान, जीवास्तिकाय/चैतन्य, पुद्गलास्तिकाय/अजीव । ६. रोहिणोनक्खत्ते पंचतारे पण्णते। ६. रोहिणी-नक्षत्र के पांच तारे प्रज्ञप्त १०. पुणध्वसुनवखत्ते पंचतारे पण्णते। १०. पुनर्वसु-नक्षत्र के पाँच तारे प्रजप्त ११. हत्यनवखत्ते पंचतारे पण्णत्ते । ११. हस्त-नक्षत्र के पाँच तारे प्रज्ञप्त - १२. विसाहानक्खत्ते पंचतारे पण्णते। १२: विशाखा नक्षत्र के पांच तारे प्रज्ञप्त समवाय-मुत्तं १८ समवाय-५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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