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________________ आम्र, १६. अशोक, २०. चम्पक, २१. वकुल, २२. वेतस, २३. घातकी, २४. शाल । वर्द्धमान का अशोक चैत्यवृक्ष बत्तीस धनुप ऊँचा, नित्य-ऋतुक/सदा हराभरा और शालरुक्ष से अवच्छन्न था । जिनवर ऋषभ का चैत्यवृक्ष तीन गाउ ऊँचा था। शेप तीर्थङ्करों के चैत्यवृक्ष उनके शरीर से बारह गुने ऊँचे थे। गंदीरक्खे तिलए य, अंबयरुक्से असोगे य ।। ३. चंपय वउले य तहा, वेडसिरुक्खे धायईरक्खे। साले य वड्डमारणस्स, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥ ४. बत्तीसई घण्इं, चेइयरुक्खोय वद्धमारणस्स। णिच्चोउगो असोगो, श्रोच्छण्णो सालरक्खेणं ॥ ५. तिणे व गाउयाई, चेइयरक्खो जिणस्स उसमस्स । सेसाणं पुण रुक्खा, सरीरतो बारसगुणा उ ॥ ६. सच्छत्ता सपडागा, सवेइया तोरणेहि उववेया। सुरअसुरगरलमहिया, चेइयरुक्खा जिणवराणं ॥ १४. एतेसि णं चउवीसाए तित्य गराणं चउवीसं पढमसीसा होत्या, तं जहा१. पढमेत्य उसभसेरणे, वीए पुण होइ सोहसेणे उ। चारू य वज्जणामे, चमरे तह सुव्वते विदन्भे ॥ २. दिपणे वाराहे पुण, पाणंदे गोयने सुहम्मे य । मंदर जसे रिठे, चक्काउह सयनु कुभ य ।। ३.मिसए य इंदे कुभे, वरदते दिगण इंदभूती य। जिनवरों के चैत्यवृक्ष छत्र, पताका, वेदिका और तोरण-उपेत तथा सुर, असुर और गरुड़ देवों द्वारा पूजित थे। ६४. चौबीस तीर्थङ्करों के प्रथम शिष्य चौबीस थे। जैसे कि १. ऋपभसेन, २.सिंहसेन, ३. चारु, ४. वज्रनाभ, ५. चमर, ६. सुव्रत, ७. विदर्भ, ८. दत्त, ६. वाराह, १०. गानन्द, ११ कौस्तुभ, १२. सुधर्मा, १३.मन्दर, १४. यश, १५. अरिप्ट, १६. चक्रायुध, १७. स्वयंभू, १८. कुम्भ, १६.भिपक्, २०. इन्द्र, २१. कुम्भ, २२. वरदत्त, २३. दन, २४. इन्द्रभूति । समवाय-सुत्तं २८८ समवाय-प्रक्रीण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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