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________________ सूरप्रभा, १२. अग्निप्रभा, १३. विमला, १४.पंचवर्णा, १५. सागरदत्ता, १६. नागदत्ता, १७. अभयकरी, १८. निर्वृतिकरी, १६. मनोरमा, २०. मनोहरा, २१. देवकुरु, २२. उत्तरकुरु, २३.विशाला, २४. चन्दप्रमा। सर्वजीववत्सल समस्त जिनवरो को ये शिविकाएँ सब ऋतुओं में शुभ छाया वाली होती हैं। २. अरुणप्पह चंदप्पह, सूरप्पह अग्गिसप्पहा चेव । विमला य पंचवण्णा, सागरदत्तातहणागदत्ताय॥ ३. अभयकरी णिन्वतिकरी, मणोरमातहमणोहरा चेव । देवकुरु उत्तरकुरु, विसाल चंदप्पहा सीया ॥ ४. एयाती सोयानो साँस, चेव जिरिदाणं । सव्वजगवच्छलाणं, सवोतुयसुभाए छायाए । ५. पुब्धि उक्खित्ता, माणुसेहि साहहरोमकूवेहि। पच्छा वहंति सीयं, असुरिंदसुरिदनागिंदा ॥ ६. चलचवलकुंडलधरा, सच्छंदविउवियाभरणधारी। सुरअसुरवंदियारणं, वहंति सीयं जिगिदाणं ॥ ७. पुरो वहंति देवा, नागा पुण दाहिम्मि पासम्मि। पच्चत्थिमेण असुरा, गरुला पुण उत्तरे पासे ॥ शिविका को पहले संहृष्ट रोम कूपवाले मनुष्य उठाते हैं पश्चात् असुरेन्द्र, सुरेन्द्र और नागेन्द्र वहन करते हैं। वे चल-चपल कुडलधारी, अपनी इच्छा से विनिर्मित आभरणों के धारी, सुरासुर से वंदित जिनेन्द्रों की शिविका को वहन करते हैं। उसे पूर्व में देव, दक्षिण पार्श्व में नागकुमार, पश्चिम में असुरकुमार और उत्तर पार्श्व में गरुड़ वहन करते हैं। ८७. उसभो य विरणीयाए, बारवईए अरिठ्ठवरणेमि । अवसेसा तित्थयरा, निक्खंत्ता जम्मभूमीसु ॥ १८. सवेवि एगदूसेण, 'णिग्गया जिणवरा चउवीसं । ८७. भगवान् ऋपभ विनीता से, __ अरिष्टनेमि द्वारवती से और शेप तीर्थङ्कर अपनी-अपनी जन्मभूमि से निष्क्रान्त हुए थे। ८८. सभी चौबीस तीर्थकर एक दूष्य से । निर्गत हुए थे, अन्यलिंग, गृहलिंग समवाय-सुत्तं २८५ समवाय-प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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