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________________ २१. विजय, २२. समुद्रविजय, २३. राजा अश्वसेन, २४. क्षत्रिय सिद्धार्थ । ३. सूरे सुदंसरणे कुमे, सुमित्तविजये समुद्दविजये य। राया य प्राससेणे, सिद्धत्येच्चिय खत्तिए॥ ४. उदितोदितकुलवंसा, विसुद्धवंसा गुणेहि उववेया। तित्थप्पवत्तयारणं, एए पियरो जिणवराणं ।। तीर्थ-प्रवर्तक जिनवरों के पिता उदितोदित कुल-वंश वाले, विशुद्ध वंश वाले और गुणों से उपेत थे। ८३. जम्बूढीप द्वीप के भरतवर्ष में इस अवसपिणी के चौबीस तीर्थङ्करों को चौवीस माताएँ हुई थी । जैसे कि १३. जंबुद्दीवे णं दीवे मारहे वासे इमोसे प्रोसप्पिणीए चउवीसं तित्यगराणं मायरो होत्या, तं जहा१. मरुदेवी विजया सेणा, सिद्धत्थामंगलासुसीमा य। पुहवी लक्खण रामा, नंदा विण्हू जया सामा॥ २.सुजसा सुव्वय अइरा, सिरिया देवी पभावई। पउमा वप्पा सिवा य, वामा तिसला देवी य जिणमाया ॥ १. मरुदेवी, २. विजया, ३. सेना, ४. सिद्धार्था, ५. मंगला, ६. सुसीमा, ७. पृथ्वी, ८. लक्ष्मणा, ६. रामा, १०. नंदा, ११. विष्णु, १२. जया, १३. श्यामा, १४. सुयशा, १५. सुव्रता, १६. अचिरा, १७. श्री, १८. देवी, १६. प्रभावती, २०. पद्मा, २१. वप्रा, २२. शिवा, २३. वामा, २४. त्रिशला। ५४. जंबुद्दीवे णं दीवे भरहे वासे इमीसे प्रोसप्पिणीए चउवीसं तित्थगरा होत्था, तं जहाउसमे अजिते संभवे अभिणंदणे सुमती पउमप्पहे सुपासे चदप्पहे सुविही सीतले सेन्से वासुपुज्जे विमले अणते धम्मे संती कुथू अरे मल्ली मुणिसुव्वए णमी अरिटुणेमी पासे ८४. जम्बूद्वीप द्वीप के भरतवर्ष में इस अवसपिणी में चौबीस तीर्थङ्कर हुए थे। जैसे कि१. ऋषभ, २. अजित, ३. सम्भव, ४. अभिनन्दन, ५. सुमति, ६. पा. प्रभ, ७. सुपार्श्व, ८. चन्द्रप्रभ, ६. सुविधि, १०. शीतल, ११. श्रेयांस, १२. वासुपूज्य, १३. विमल, १४. अनन्त, १५. धर्म, १६. शान्ति, समवाय-सुन २८३ समवाय-प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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