SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामनिधत्ताउके प्रोगाहाणानामनिधत्ताउके । ४२. नेरइयाणं भंते ! कविहे पाउगबंधे पण्णते ? गोयमा ! छविहे पण्णते, तं जहाजातिनामनिधत्तारके गइनामनिघत्ताउके ठिइनामनिधत्ताउके पएसनामनिधत्ताउके प्रोगाहणाणामनिधत्ताउके। प्रदेशनामनिघत्त-आयुष्क, ५. अनुभागनामनिधत्त-आयुष्क, ६. अव गाहनानामनिधत्त-पायुप्क। ४२. भते ! नैरयिकों के कितने प्रकार का आयुष्क-बंध प्रज्ञप्त है ? गौतम ! छह प्रकार का प्रज्ञप्त है, जैसे कि-- १.जातिनाम-निघत्त-धारी आयुष्क, २. गतिनामनिघत्त-आयुष्क, ३. स्थितिनामनिधत्त-आयुष्क, ४. प्रदेशनामनिधत्त-पायुप्क, ५. अनुभागनामनिघत्त-आयुष्क, ६. अवगाहनानामनिघत्त-पायुप्क । इसी प्रकार वैमानिक तक है । एवं जाव वेमाणियत्ति । ४३. निरयगई रणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं ४३. भंते ! नरकगति में उपपात का विरहकाल कितना प्रज्ञप्त है ? पण्णत्ता? गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं वारसमुहुत्ते । एवं तिरियगई मणुस्सगई देवगई। ४४. सिद्धिगई णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया सिझणयाए पण्णत्ता। गोयमा! जहणणं एक्कं समयं उकोसेरणं छम्मासे । एवं सिद्धिवज्जा उव्वट्टरमा । गौतम ! जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः वारह मुहूर्त । इसी प्रकार तिर्यञ्चगति, मनुष्य गति और देवगति है। ४४. भंते ! सिद्धिगति में सिद्ध होने का विरहकाल कितना प्रजप्त है ? गौतम ! जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः छह मास । इसी प्रकार सिद्धिगति को छोड़कर उद्वर्तना का विरहकाल ज्ञातव्य ४५. इमोसे णं मंते ! रयणप्पहाए ४५. नंते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी में समवाय-मृत्तं २७६ २७६ समवाय-प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy