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________________ वास प्रज्ञप्त हैं। मोमेज्जनगरावाससयसहस्सा पण्णत्ता। ते गं भोमेज्जा नगरा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा, एवं जहा भवरणवासीणं तहेव नेयच्या, नवरं-पडागमालाउला सुरम्मा पासाईया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरूवा । वे भौमेय नगर वाहर से वृत्त, भीतर से चतुरस्र/चतुष्कोण और जैसा भवनवासियों का है, वैसा ही ज्ञातव्य है। वे पताका की माला से आकुल, सुरम्य, प्रासादीय/मानन्दकर, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं। १५. भंते ! ज्योतिष्क देवों के विमाना वास कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्वे योजन ऊपर जाने पर वहां एक सौ दस योजन के वाहल्य में तिरछे ज्योतिष्क क्षेत्र में ज्योतिष्क देवों के असंख्य ज्योतिष्क विमानावास प्रज्ञप्त हैं। १५. केवइया णं भंते ! जोइसियाणं विमाणावासा पण्णत्ता? गोयमा ! इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जारो भूमिभागानो सत्तनउयाई जोयणसयाई उड्ढं उप्पइत्ता, एत्य णं दसुत्तरजोयणसयवाहल्ले तिरियं जोइसविसए जोइसियाणं देवाणं असंखेज्जा जोइसियविमाणावासा पण्णत्ता। ते जं जोइसियविमारणावासा अभुग्गयमूसियपहसिया विविहमणिरयणभत्तिचित्ता वाउद्धयविजय-वेजयंती-पडाग-छत्तातिछत्तकलिया, तुंगा गगणतलमणुलिहंतसिहरा जालंतररयणपंजरुम्मिलितन्व मरिण-कणगथभियागा विगसिय-सयपत्तपुंडरीय - तिलय - रयणड्डचंदचित्ता अंतो बहिं च सहा तवणिज्ज-बालुगा-पत्थडा सुहकासा वे ज्योतिष्क विमानावास अभ्युद्गत, निःसृत, प्रभासित विविध मरिण और रत्नों के भीत्तिचित्रों वाले, वातप्रकम्पित विजयवैजयन्ती पताका तथा छत्रातिछत्रों से शोभित और उत्तुग हैं । गगनतल स्पर्शी शिखर वाले, खिड़कियों के अन्तराल में, पिंजरे से निकाल कर रखी हुई वस्तु की भांति, मरिण और स्वर्ण की स्तूपिका वाले, विकसित शतपत्र पुंडरीक समवाय-सुत्त । २६३ समवाय-प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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