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________________ गौतम ! सातवीं पृथ्वी के शतसहस्र/एक लाख आठ हजार योजन प्रमाण वाहल्य से ऊपर साढ़े बावन हजार योजन का अवगाहन कर तथा नीचे से साढ़े बावन हजार योजन का वर्जन कर तथा मध्य के तीन हजार योजन में सातवीं पृथ्वी के नैरयिकों के अनुत्तर तथा बहुत विशाल पांच महानरकावास हैं। जैसे कि गोयमा ! सत्तमाए पुढवीए अठ्ठत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उरि पद्धतेवणं जोयणसहस्साई प्रोगाहेत्ता हेट्ठा वि अद्धतेवणं जोयरणसहस्साई वज्जेता मझे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं सत्तमाए पुढवीए नेरइयाणं पंच अणुतरा महइमहालया महाणिरया पण्णता, तं जहाकाले महाकाले रोरुए महारोरुए अप्पइट्ठाणे नामं पंचमए । ते णं नरया वट्टे य तंसा य अहे खुरप्प-संठाण-संठिया पिच्चंधयारतमसा ववगयगहचंदसूर-णक्खत्त-जोइसपहा मेदवसा-पूय-रुहिर-मंस-चिक्खिल्ललित्ताणु-लेवणतला असुई वीसा परमभिगंधा काऊअगणिवण्णाभा करखडफासा दुरहियासा असुहा नरगा असुहाम्रो नरएसु वेयणाम्रो। काल, महाकाल, रौरव, महारौरव और अप्रतिष्ठान । वे नरक वृत्त, त्रिकोण एवं नीचे क्षुरप्र-संस्थानों से संस्थित हैं। वे अन्धकार से नित्य तमोमय, ग्रह, चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र और ज्योतिष की प्रभा से शून्य, मेद, चर्वी, मवाद, रुधिर मांस के कीचड़ से अनुलिप्त तल वाले, अशुचि, विप्टायुक्त, अत्यन्त दुर्गन्ध वाले, कापोत अग्निवर्ण की आभा वाले, कर्कणस्पर्ण वाले और अत्यधिक असह्य हैं। वे नरक अशुभ हैं और उन नरकों में अशुभ वेदनाएं हैं। १०. केवइया णं मते ! असुरकुमारा वासा पण्णता? गोयमा ! इमोसे णं रयरगप्पहाए पुढवीए असोउत्तरजोयणसयसहस्हवाहल्लाए उरि एगं जोयणसहस्सं प्रोगाहेत्ता हेट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जेता मझे १०. भंते ! अमुरकुमारों के आवास कितने प्रजप्त हैं ? गौतम ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी के एक शत-सहस्र/लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण वाहल्य से ऊपर एक हजार योजन का अवगाहन कर तथा नीचे से एक हजार योजन २६० समवाय-प्रकीर्ण पा-सुत्त
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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