SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जति उवदंसिज्जति । प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। ते एवं पाया एवं णाया एवं विण्णाया एवं चरण-करणपरूवयणा प्राधविज्जति पण्णविज्जति परूविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदंसिज्जति । यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार चरण-करण-प्ररूपणा का इसमें आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह है वह दृष्टिवाद । यह है वह द्वादशांग गणिपिटक । सेत्तं दिटिवाए। सेत्तं दुवालसगे गणिपिडगे। ४५. अतीत काल में अनन्त जीवों ने इस द्वादशांग गणिपिटिक की आज्ञा की विराधना कर चातुरंत संसारकांतार में अनुपर्यटन किया। ४५. इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं अतीते काले अणंता जीवा पारगाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरिर्यादृसु । इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं पड़प्पण्णे काले परित्ता जीवा प्राणाए विराहेत्ता चाउरंतं संसारकंतारं अणुपरियति । इच्चेयं दुवालसंग गणिपिडग अणागए काले अरणंता जीवा प्राणाए विराहेत्ता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियट्टिस्सति । वर्तमान काल में परिमित जीव इस द्वादशांग गणिपिटक की आज्ञा की विराधना कर चातुरंत संसारकांतार में अनुपर्यटन करते हैं। भविष्य काल में अनन्त जीव इस द्वादशांग गरिणपिटिक की आज्ञा की विरावना कर चातुरंत संसारकांतार में अनुपर्यटन करेंगे। ४६. इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं प्रतीते काले प्रणेता जीवा प्राणाए पाराहेत्ता चाउरंतं संसारकतार विश्वईमु । ४६. अतीत काल में अनन्त जीवों ने इस द्वादशांग गरिणपिटक की आज्ञा की पाराधना कर चातुरंत संसारकांतार को पार किया था। समपाय-मुन २५४ समवाय-द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy