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________________ यणसए दस उद्देसगसहस्साई दत समुद्देसगसहस्साई छत्तीसं वागरणसहस्साई चउरासोई पयसहस्साई पयग्गेणं, संखेज्जाइं अवखराइं अणंता गमा अणंता पन्जवा। परित्ता तसा अणंता यावरा सासया कडा णिवा णिकाइया जिणपणत्ता भावा आघविनंति पणविज्जति पहविजंति दसिज्जति निदंसिजति उवदंतिजति। कुछ अधिक सौ अध्ययन, दस हजार उद्देशक, दस हजार समुहेशक, छत्तीस हजार व्याकरण, पद-प्रमाण से चौरासी हजार पद, संन्येय अक्षर, अनन्त गम/अर्थ धर्म अनन्त पर्याय हैं। इनमें परिमित स जीवों, अनन्त न्यावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निबद्ध और निकाचित जिन प्रजप्त भावों का पान्यान किया गया है, प्रजापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। यह प्रात्मा है. ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरण करणप्ररूपणा का प्रान्यान किया गया है, प्रजापन किया गया है, प्ररूपरण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है। ग्रह है वह व्याख्या। से एवं आया एवं गाया एवं विष्णाया एवं चरण-करणपरूवयपा आंधविज्जति पप्णविति पविजति दंति जति निदसिज्जति उवदंसिजति । सेत्तं वियाहे । ७. से कि तं नायाधम्मरहामो ? नाया-धम्मकहानु णं नाया नगराई उज्जाणाई चेइमाई दगडाई रायाणो अम्मापियरो समोमरणाई धम्मावरिया धम्मकहानो इहलोइय-परलोइप इदिदवितेला भोगपरिचाया पवजारों सुपपरिगहा तयोरहागाई परियाणा लेहपाम्रो भत्तपच्चरखाणाई पायो ए, वह जात-धर्मकथा क्या है ? जात-धर्मकथा में जातों/पात्रों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, गजा, माता-पिता, समवसरमा, धर्माचार्य, धर्मकया, ऐहलांकिकपारलौकिक ऋद्धि-विशेष, भोगपदिन्याग, प्रवज्या, श्रुत-परिग्रहण, नम-उपधान, पर्याय/दीक्षा-कान, ननवना, भक्त-प्रत्यास्यान, प्रायोपगमन. देवलोकगमन, मुकुल में भाबाद मृत समवाय-द्वादनांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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