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________________ सूयगडस्स णं परिता वायरणा संखेज्जा प्रणुभोगदारा संखेज्जाम्रो पडिवत्तीम्रो संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाश्रो निज्जुतीनो । से णं गट्टयाए दोच्चे अंगे दो सुयक्खधा तेवीसं श्रभयणा तेत्तीस उद्देसणकाला तेत्तीसं समुद्दे सणकाला छत्तीसं पदसहसाई पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा श्रता गमा अनंता पज्जवा परिता तसा श्रणंता थावरा सासया कडा रिगवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जति पण्णविज्जंति परुविज्जति दंसिज्जति निदं सिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं श्राया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चररण करणपरवणया प्राघविज्जति पण्णविज्जति परुविज्जति दंसिब्जति उवदंमिज्जति । सेत्त सूयगडे । ४. मे कि तं ठाणे ? ठाणे णं ससमया ठाविज्जति परममया ठाविज्जति ससमयपरसमया ठाविज्जति जीवा ममवाग-मुत्त २२९ सूत्रकृत को वाचनाएँ परिमित हैं, अनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, निर्युक्तियां संख्येय है । यह अंग की अपेक्षा से दूसरा अंग है । [ इसके ] दो श्रुतस्कन्ध, तेईस अध्ययन, तेतीस उद्देशनकाल, तेतीस समुद्देशन-काल, पदप्रमाण से छत्तीस हजार पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम / अर्थ / धर्म और अनन्त पर्याय हैं । इस में परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का ग्राख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह आत्मा है, ज्ञाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार इसमें चरणकरण- प्ररूपणा का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपर्शन किया गया है । यह है वह सूत्रकृत । ४. वह स्थान क्या है ? स्थान में स्व- समय की स्थापना की गई है, पर समय की स्थापना की गई है, स्व-समय पर समय की समवाय- द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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