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________________ पढमो समवायो पहला समवाय १. सुयं मे पाउसं! तेणं भगवया एवमक्खायं १. सुना है मैंने अायुष्मन् ! उन भगवान् द्वारा इस प्रकार कथित है २. इह खलु समणेणं भगवया महा वीरेणं प्राइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धणं पुरिसुत्तमेणं पुरिससोहेणं पुरिसवरपुंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिरणा लोगुत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपज्जोयगरेणं अभयदएणं चक्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएरणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेरणं धम्मसारहिरणा धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टिणा अप्पडिहयवरपाणदंसरगधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिणेणं तारएणं बुद्धेणं बोहएणं मुत्तेणं मोयगेरणं सवण्णुरगा सव्वदरिसिणा सिवमयलमख्यमणंत मक्खयमव्वाबाहमपुणरावत्तयं सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेणं इमे दुवालसंगे गरिणपिडगे पण्णते, तं जहापायारे सूयगडे ठाणे समवाए विवाहपण्णत्ती नायधम्मकहाओ उवासगदसानो अंतगडदसाम्रो अणुत्तरोववाइयदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुए दिदिवाए। २. आदिकर, तीर्थकर, स्वयं-सम्वुद्ध, पुरुपोत्तम, पुरुष-सिंह, पुरुपवरपुण्डरीक / पुरुप-कमल, पुरुष-वरगन्धहस्ती, लोकोत्तम, लोकनाथ, लोक हृदय, लोक-प्रदीप, लोकप्रद्योतकर, अभयदाता, चक्षुदाता, मार्गदाता, शरणदाता, जीवदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, धर्मदेशक, धर्मनायक, धर्म-सारथी, धर्म-वरचातुरन्त/चतुर्दिक-चक्रवर्ती, अप्रतिहत/शाश्वत-श्रेष्ठ-ज्ञान-दर्शन-धारक, विवृत्तछम/निर्दोष, जिन, ज्ञापक, तीर्ण, तारक, बुद्ध, बोधक, मुक्त, मोचका, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी, शिव, अचल, अरुज | रोगमुक्त, अनन्त, अक्षय, अव्यावाध / व्यवधान-रहित, अपुनरावर्तक/पुनर्जन्म-रहित, सिद्धिगति नामक स्थान सम्प्राप्त करने वाले श्रमण भगवान् महावीर द्वारा यह द्वादशांग गणिपिटक प्रज्ञप्त है । जैसे किआचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्या-प्रज्ञप्ति, ज्ञाता-धर्मकथा, उपासक-दशा, अन्तकृत्-दशा, अनुत्तरोपपाति-दशा, प्रश्न-व्याकरण, विपाक-श्रुत और दृष्टिवाद । السلع समवाय-१ समवाय-सुत्तं
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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