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________________ १८. सटवेवि गं यखारपव्यया णिसढनीलयंतवासहरपव्ययंतेणं चत्तारि-चतारि जोयणसयाई उड्ढ उच्चत्तणं, चत्तारि-चतारि गाउयसयाई उध्येहेणं पण्णता । १८. समस्त वक्षस्कार पर्वत निपध और नीलवान् वर्षधर पर्वत ऊंचाई की दृष्टि से चार-चार सौ योजन ऊँचे तथा चार-चार सौ गाउ उद्वेधवाले/ गहरे प्राप्त हैं। १६. प्रारण्य-पाणएसु-दोसु फापेसु चतारि विमाणसया पण्णता। १६. मानत और प्राणत-इन दो कल्पों में चार सौ विमान प्रज्ञप्त है । २०. समणस्स गं भगवप्रो महावीर स्स चतारि सया वाईणं सदेवमणयासुरम्मि लोगम्मि याए अपराजियाणं उपक्रोमिया वाइसंपया होत्या। २०. श्रमण भगवान् महावीर के देव, मनुप्य और असरलोक में होने वाले वाद में अपराजित चार सी वादियों की उत्कृष्ट श्रमण-सम्पदा थी। २१. अजिते गं परहा प्रवपंचमाई धणुसयाई उड्ढे उच्चत्तणं होत्या। २१. महत् अजित ऊँचाई की दृष्टि से साढ़े चार सौ धनुप ऊँचे थे । २२. सगरे णं राया चाउरंतचषक घट्टी अपंचमाई घणुसयाई उड्दं उच्चत्तणं होत्या। २२. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा सगर ऊँचाई की दृष्टि से साढ़े चार सौ धनुप ऊँचे थे। २३. सव्येवि णं वखारपत्वया सोयासोतोयानो महानईओ मंदरं वा पच्वयं पंच-पंच जोयणसयाई उड्ढे उच्चत्तणं, पंच-पच गाउयसयाई उन्हेणं पण्णत्ता। २३. शीता और शीतोदा महानदियों के सभी वक्षस्कार और मन्दर पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से पांच-पांच सौ योजन ऊंचे तथा पांच-पांच सौ गाउ उद्वेधवाले/गहरे प्रज्ञप्त है । २४. सव्वैवि णं वासहरकडा पंच- पंच जोयणसयाई उडळ उच्चतणं, मूले पंच-पंच जोपरणसयाई विषखमेणं पण्णता। , २४. समस्त वर्षधर-कूट ऊँचाई की दृष्टि से पांच-पांच सौ योजन ऊँचे तथा मूल में पांच-पांच सौ योजन विष्कम्भवाले/चौड़े प्रज्ञप्त हैं । समावय-सुत्त २०६ समवाय-शतोत्तर
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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