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________________ सततमो समवाश्रो १. दसदसमिया णं भिक्खुपटिमा एगेणं राईदिवसतेणं प्रह निक्मासतेहि थट्टासुतं महाकप्पं ग्रहामागं अहातच्च सम्मं कारण फातिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया धारणाए धाराहिया यायि भयद । २. समभिसमान एक्कसवतारे पणते । ३. सुविही पुष्कदंते णं प्ररहा एवं पण उद्धं उच्चतेणं होत्या । ४. पासे णं प्ररहा पुरिसादाणीए एकं वासयं सव्वाजयं पालइत्ता सिद्धे युद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिडे सव्यदुक्खहोणे | ५. थेरे णं धज्जसुहम्मे एकं वाससयं सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिणिव्वुडे सव्वदुपखपहीणे । ६. सम्वेवि णं दीहवेय ड्ढपव्वया एगमेगं गाउयसयं उटं उच्चतेणं पण्णत्ता । समवाय- सुत्तं २०५ सौवां समवाय १. दादशमिका भिक्षु प्रतिमा सी रातदिन पाँच सौ पचास भिक्षा [ - दत्तियों ] से मूत्र के अनुरूप, कल्प के अनुरूप, मार्ग के अनुरूप और तथ्य अनुरूप, काया से सम्यक् स्पृष्ट, पालित, शोधित, पारित, कीर्तित और आज्ञा से आराधित होती है । २. शतभिषक् नक्षत्र के सौ तारे प्राप्त हैं । ३. श्रहंतु सुविधि पुष्पदन्त ऊँचाई की दृष्टि से सो धनुष ऊंचे थे । ४. पुरुपादानीय अर्हतु पार्श्व सौ वर्षों को सम्पूर्ण श्रायु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दु:ख मुक्त हुए । ५. स्थविर श्रायं सुधर्मा सो वर्षो की सम्पूर्ण श्रायु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दु:ख मुक्त हुए । ६. समस्त दीर्घ वैताढ्य पर्वत ऊँचाई की दृष्टि से सौ-सौ गाउ ऊँचे प्रज्ञप्त हैं । समवायय- १००
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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