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________________ ८. सब्वेवि णं अंजणगपव्वया चउ रासीइं-चउरासीइं जोयणसहस्साई उड्ढं उच्चत्तणं पण्णत्ता । ८. समस्त अजनक पर्वत ऊँचाई को दृष्टि से चौरासी-चौरासी हजार योजन ऊँचे प्रज्ञप्त हैं। ६. हरिवासरम्मयवासियाणं जीवाणं घणुपट्टा चउरासीई-चउरासीई जोयणसहस्साइं सोलस जोयपाई चत्तारि य भागा जोयरपस्स परिक्खेवेणं पण्णता। ६. हरिवर्ष और रम्यकवर्ष की जीवा के धनुःपृष्ठ का परिक्षेप (परिधि) चौरासी हजार सोलह योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से चार भाग प्रमाण ८४०१६ योजन प्रज्ञप्त हैं। १०. पंकबहुलस्स णं कंडस्स उवरि- ल्लामो चरिमंतानो हेदिल्ले चरिमंते, एस जं चोरासीई जोवणसयसहस्साई प्रवाहाए अंतरे पण्णत्ते। १०. पंचबहुलकांड के उपरितन चरमान्त मे अधस्तन चरमान्त का अवाधतः अन्तर चौरासी शत-सहस्र लाख योजन प्राप्त है। ११. वियाहपण्णतीए णं भगवतीए चउरासीई पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता। ११. भगवती . व्याख्याप्रज्ञप्ति के पद परिमाण की दृष्टि से चौरासी हजार पद प्रज्ञप्त हैं। १२. चोरासीइं नागकुमारवाससय- सहस्सा पण्णत्ता। १२. नागकुमार के आवास चौरासी शत सहस्र /लाख प्रज्ञप्त हैं। पइण्णगसहस्सा १३. प्रकीर्णक चौरासी हजार प्रज्ञप्त हैं। १३. चोरासीइं पण्णत्ता। १४. चोरासीइं जोणिप्पमुहसय- सहस्सा पण्णता। १४. योनि-प्रमुख/योनि-द्वार चौरासी शत-सहस्र/लाख प्राप्त हैं। १५. पुटवाइयाणं सीसपहेलियापज्जव- साणाणं सडाणट्ठाणंतराणं चोरासीए गुणकारे पण्णता। १५. पूर्व (संख्यावाची) से लेकर शीर्प प्रहेलिका-अन्तिम महासंख्या पर्यन्त स्वस्थान और स्थानान्तर चौरासी लाख गुणाकार वाले प्रज्ञप्त हैं। समवाय-८४ समवाय-सुतं
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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